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________________ ३४४] अभिवचनसार भापाटीकर । वीर्य चारित्र सम्यक्तादि विशेष गुण, अस्तित्त्व, वस्तुत्त्व, द्रव्यत्त्व मादि सामान्य गुण सदा साथ रहनेवाले गुण हैं । और मोक्षापेक्षा सिद्धपना आदि पर्याय हैं। सिद्ध भगवानका आत्मा अपने इन शुद्ध गुण पर्यायोंका आत्मा है, सर्वस्व है, आधार है इसलिये शुद्धात्मा द्रव्य है । इस कथनसे आचार्यने यह भी सिद्ध करदिया है कि द्रव्यमें न तो गुण बढ़ते हैं, न अपनी संख्यासे घटने हैं, उनमें प्रगटपना अप्रगटपना नाना निमित्तोंसे हुआ करता है इसीसे समय समय गुणोंकी स्वाभाविक या वैभाविक अवस्था विशेष जानने में आती है इमोको पर्याय कहते हैं। इसलिये वह चेतन प जिसमें जडपना नहीं है कभी भी पलटते पलटते जड अचेतन नहीं हो सका और न अचेतन जड़ द्रव्य पलटते पलटते कभी चेतन बन सक्ते हैं । चेतनकी पर्यायें चेतनरूप, अचेठनकी • अचेतन रूप ही हमा करेंगी। इसलिये अपने को जड़ चेतन नों एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध रखते हुए दूध पानीकी तरह मिल उन दोनोंको ईसकी तरह अलग अलग जानो। चेतनके स्वाभाविक गुण पर्याय चेतनमे, जड़के स्वाभाविक गुणपर्यायें अचे. वनमें । इस ही ज्ञानको सच्चा पदार्थज्ञान कहते हैं । तथा यही ज्ञान विवेकरूप कहा जाता है। इसी विवेकसे निज मात्मा पथक, झलझता है, इसी झलकनको स्वानुभव व स्वात्मध्यान कहते हैं तथा यही आनंद और वीतरागताको देता है, यही निश्चय रत्नत्रयरूप मोक्ष मार्ग है, यही वंध नाशक है, यही स्वतंत्रताका बीज है इस पदार्थ ज्ञानकी महिमाको श्री अमृतचंद्र भाचार्यने समयसार कलशमें कहा है
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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