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________________ amriwave श्रीप्रवचनसार भापार्टीका। । ३३९ सक्ता, स्वात्माके अनुभव विना सम्यक्त नहीं हो सका । सम्यक और स्वात्मानुभव होनेका एक ही काल है। जब यह शक्ति प्रगट हो जाती है तब ही दर्शनमोहनीय उपशम होती है। ____ सर्वज्ञ वीतराग पूर्ण ज्ञानी और पूर्ण वीतरागी होने के कारण अर्हत अर्थात जीवन्मुक्त अवस्थामें शरीर सहित होनेके कारण ही उपदेश दे सके हैं। उनका उपदेश यथार्थ पदार्थोका प्रगट कर. नेवाला होता है,उस ही उपदेशको गणधर आदि महाबुद्धिशाली आचार्य धारणामें रखते हैं और उनके द्वारा अन्य ऋषिगण जानते हैं। उनकी परम्परासे चला आया हुमा वह उपदेश है नो श्री कुन्दकुन्द, उमास्वामी, पूज्यपाद आदि आचार्योंके रचित ग्रन्थों में मौजूद है । इसलिये मिनवाणीमें प्रसिद्ध चारों ही अनुथागोंका कथन हरएक मुमुक्षुको जानना चाहिये। जितना अधिक शास्त्रज्ञान होगा उतना अधिक स्पष्ट ज्ञान होगा। मितना पट ज्ञान होगा उतना ही निर्मल मनन होगा। प्रथमानुयोगमें पूज्य पुरुषोंके जीवनचरित्र उदाहरण रूपसे फर्मोके प्रपंचको व संसार या मोक्षमार्गको दिखलाते हैं । फरणानुयोगमें जीवोंके भावोंके वर्तनकी अवस्थाओंको व फोकी रचनाको व लोकके स्वरूपको इत्यादि तारतम्य कथनको किया गया है। चरणानुयोगमें मुनि तथा श्रावकके चारित्रके भेदोंको वताकर व्यवहारचारित्रपर मारूढ़ किया गया है। द्रव्यानुयोगमें छ: द्रव्योंका स्वरूप बताकर मात्मा द्रव्यके मनन, मनन व ध्यानका उपाय बताकर निश्चय रत्नत्रयके पथको दर्शाया गया है। इन चारों ही प्रकारके सैकड़ों व हजारों ग्रन्थ निनवाणो में हैं-इनका
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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