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________________ श्रीकुंदकुंदस्वामी विरचित - श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । 1 दोहा - परमातम आनंदमय, ज्ञान ज्योतिमय मार। भोगत निज सुख आपसे, आपी में अधिकार ॥ अष्ट करमको नष्ट कर, निज स्वभाव झलकाय । परम सिद्ध निजमें, रमी, वंदन ध्याय ॥ परम पूज्य अरहंत गुरु, जिनवाणीके नाथ । सकल शुद्ध परमात्मा, नमहुं जोड़ निज हाथ || रिषभ आदि महावीर लो, चौबीसों जिन राय । परम शूर शुद्धात्मा, नमहुँ नम गुण गाय ॥ गौतम गणक ईश मुनि, जंतू और धर्म । पंचम युग केवलि भए, मगायो जिन धर्म | कर प्रणाम और नमनकर, श्रुत केवलि समुदाय } अंग पाठि मुनिवर सबै, निज पर तत्व खखाय ॥ कुंद कुंद आचार्य गुणं सुमखे हरवार । जिनके वचन प्रमाण हैं, जिनवर वच अनुसार ॥ सार तत्व निज आत्मा दिखलावन रविसार । var विभ्रम मोह तम, हरण परम अधिकार | * प्रारंभ - श्रायण वदी १४ वि० सं० १९७९ तः० २२-७- २२ ।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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