SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६] श्रीमवचनसार भाषाटीका । उत्थानिका-आगे पहले जो कह चुके हैं कि रागादि रहित कर्मोंका उदय तथा विहार आदि क्रिया बंधका कारण नहीं होते हैं उसी ही अर्थको और भी दूसरे प्रकारसे दृढ़ करते हैं। अथवा यह बताते हैं कि अरहंतोंके पुण्यकर्मका उदय बन्धका कारण नहीं है। पुण्णफला अरहता, तेसिं किरिया पुणो हि । ओदायगा। मोहाहीहिं विरहिदा, तम्हा सा खाइगत्तिमदा ४५॥ पुण्यफला अर्हन्तस्तेषां किया पुनर्हि औदायिकी। . . मोहाहिमिः विरहिता तस्मात् सा क्षायिकीति मता ॥४५॥ : सामान्यार्थ-तीर्थकर स्वरूप अरहंत पुण्यके फलसे होते हैं तथा निश्चयसे उनकी क्रिया भी औदयिकी है अर्थात् मौके उदयसे होनी है मोह आदि भावोंसे शून्य होने के कारण वह क्रिया क्षायिकी कही गई है। __ अन्वय सहित विशेषार्थः-(अरहता) तीर्थकरस्वरूप अरहंतभगवान पुण्णफला ) पुण्यके फलस्वरूप हैं-अर्थात् पंच महा कल्याणको पूभाको उत्पन्न करनेवाला तथा तीन लोकको जीतनेवाला जो तीर्थकर नाम पुण्यकर्म उसके फलस्वरूप अईत बीर्थकर, होते हैं । (पुणः) तथा (तेर्सि) उन अरहंतोंकी (किरिया ) क्रिया अर्थात् दिव्य ध्वनिरूप वचनका व्यापार तथा विहार आदि शरीरका व्यापाररूप क्रिया (हि) प्रगटरूपसे (ओदयिगा) औदयिक है। अर्थात् क्रिया रहित नो शुद्ध आत्मतत्व उससे, विप-' रीत जो कर्म उसके उदयसे हुई है । (सा) वह क्रिया (मोहा ।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy