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________________ श्रीप्रवचनसार भाषाटीका। [१४३ आत्मा पदार्थ ज्ञानी होजायगा वैसे घट पट आदि प्रत्यक्ष पुदल भी ज्ञानके संयोगसे ज्ञानी होजावेंगे, सो ऐसा जगतमें होता नहीं, यदि ऐसा हो तो जड़से चेतन होजाया करें और जब ज्ञानके संयोगसे जड़ चेतन होगा तब चेतन भी ज्ञान के वियोगसे जड़ होनावेगा, यह बड़ा भारी दोष होगा। इससे यह बात निश्चित है कि आत्मा और ज्ञानका तादात्म्य सम्बन्ध है जो कभी भी छूटनेवाला नहीं है । ज्ञानी आत्मा अपनी ही उगदान शक्तिसे अपने ज्ञानरूप परिणमन करता है। और उसी ज्ञान परिणतिसे अपनी निर्मलता के कारण सर्व ज्ञेय पदार्थोको जान लेता है और वे पदार्थ भी अपनी शक्तिसे ही ज्ञानमें झलकते हैं जिसको हम व्यवहार नयसे कहते हैं कि सर्व पदार्थ ज्ञ नमें समागये। इस तरह आत्माको ज्ञान स्वभाव मानकर हमें निर्मल केवलज्ञानमई स्वभावकी प्रगटताके लिये शुद्धोपयोगकी सदा भावना करनी चाहिये यही तात्पर्य है ॥३५॥ उत्थानिका-आगे बताते हैं कि आत्मा ज्ञानरूप है तथा अन्य सर्व ज्ञेय हैं अर्थात् ज्ञान और ज्ञेयका भेद प्रगट करते हैंतम्हा जाणं जीवो, पं दव्वं सिधा समक्खादं । दव्वंति पुणो आदा, परं च परिणामसंवद्धं ॥३६॥ तस्मात् ज्ञानं जोयो, शेयं द्रव्यं त्रिधा समाख्यातम् । द्रव्यमति पुनरागमा, परश्च परिणामसंवरः ॥ ३६ ॥ सामान्पार्थ-इसलिये जीव ज्ञान स्वरूप है और और
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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