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________________ श्रीभवचनसार थापाटीका। [१३५ सूत्र जिनोपदिष्ट पुद्गलद्रव्यात्मकर्यचनैः । तज्ज्ञप्तिहि ज्ञानं सूत्रस्य च शतिर्मणिता ॥ ३४ ॥ सामान्यार्थ-द्रव्यश्चतरूप पुद्कद्रव्यमई वचनोंसे मिनंद भगवानके द्वारा उपदेश किया गया है । उस द्रव्यश्श्रुतका मो ज्ञान है वही निश्चयकर भावश्रुतज्ञान है । और द्रव्यश्रुतको श्रुतज्ञान व्यवहारसे कहा गया है। ___ अन्वय सहित विशेषार्थ-(सुत) द्रव्यश्चत (पोग्गल दनप्परोहिं वयणेहि ) पूगल द्रव्यमई दिव्यध्वनिके वचनोंसे (निणोवदिट्ट) मिन भगवानके द्वारा उपदेश किया गया है। (हि) निश्चय करके (तजाणणा) उस द्रव्यश्रुतके आधारसे जो जानपना है (णाणं) सो अर्थज्ञानरूप भावश्रुत ज्ञान है। (य) और (सुत्तस्स) उस द्रव्यश्चतको भी (जाणणा) मानपना या ज्ञान संज्ञा (भणिया) व्यवहार नयसे कही गई है। भाव यह है कि जैसे निश्चयसे यह जीव शुद्ध बुद्ध एक स्वभाव रूप है पीछे व्यवहार नयसे जीव नर नारक मादि रूप भी कहा जाता है। वैसे निश्चयसे ज्ञान सर्व वस्तुओंको प्रकाश करनेवाला अखंड एक प्रतिमास रूप कहा जाता है सो ही ज्ञान फिर व्यवहार नयसे मेघोंके पटलोंसे आच्छादित सुर्यकी अवस्थाविशेषकी तरह कर्म पटलसे आच्छादित अखंड एक ज्ञानरूप होकर मतिज्ञान श्रुतज्ञान मादि नामवाला हो जाता है। भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने बताया है कि वास्तवमें ज्ञान ही सार गुण है जो कि इस आत्माका स्वभाव है तथा वह एक अखंड सर्व ज्ञेयोंको प्रकाश करनेवाला है। निश्च
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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