SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HAMAAnam ११४] श्रीमवचनसार भाषाटीका। विशेष अनेक गुण या स्वभाव पाए जाते हैं-हरएक गुण या स्वभाव आत्मामें व्यापक है । तब जैसे एक आम्रके फलको वर्णके ध्यापनेकी अपेक्षा हरा, रसके व्यापनेकी अपेक्षा मीठा, गंधक व्यापने की अपेक्षा भुगंधित, स्पर्शके व्यापनेकी अपेक्षा नर्म कह सक्ते हैं वैसे ही आत्माको अस्तित्त्व गुणकी अपेक्षा पतरूप द्रव्यत्वगुणकी अपेक्षा द्रव्यरूप, प्रदेशव गुणकी अपेक्षा प्रदेश रूप आकारवान, नित्यत्व स्वभावकी अपेक्षा नित्य. अनित्यन्त स्वभावकी अपेः अनित्य सम्यक्त गुणली अपेक्षा सम्पतो. चात्रि गुणकी अपेक्षा चारित्रमान, वीर्य गुणकी अपेक्षा वयदान सुख गुणकी अपेक्षा परम सुखो इत्यादि रूप कह सकते हैं-आत्मा अनंत धर्मात्मक हैं तब ही उसको द्रव्यकी संज्ञा ई-गुणोंके समुदायको ही द्रव्य महले हैं। जो अनेक गुणोंका अखंड विंड होता है उसे ही द्रव्य कहते हैं उसमें जब मिस गुणकी मुख्यताले कई तब उसको उसी गुण रूप कह सके हैं ऐसा कहने परभी अन्य गुणोंकी सत्ताका उससे अभाव नहीं होजाता । जैसे एक पुरुषमें पितापन पुत्रकी अपेक्षा, पुत्रफ्ना पिताकी अपेक्षा, भाननापना मामाकी अपेक्षा, भतीजापना चाचाकी अपेक्षा, भाईएना भाईकी अपेक्षा इस तरह अनेक सम्बन्ध एक ही समयमें पाए जाते हैं परंतु जब पिता कहेंगे तब अन्य सम्बन्ध गौण हो जाने तथापि उसमें से सम्बन्ध चले नहीं गए-यह हमारी शक्तिका अभाव है कि हम एक ही काल अनेक सम्बन्धोंको कह नहीं सक्ते इसी तरह भात्मा अनंत धर्मात्मक है। जब जिस धर्मकी मुख्यतासे कहा जाय तब उस पर्मरूप आत्माको कह सके हैं। अन्य गुणोंकी अपेक्षा ज्ञान गुण
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy