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________________ २०६] श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । हैं। प्रदेशत्त्वगुणको अपेक्षा द्रव्यका नितना प्रमाण है उतने ही प्रमाणमें अन्य सर्वगुण उस द्रव्यमें रहते हैं, क्योंकि कहा है कि 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः' उमा० त० सु० कि गुण द्रव्यके आश्नय रहते हैं तथा गुणोंके गुण नहीं होते इसलिये द्रव्य और गुणोंका तादात्म्य है, द्रव्यसे गुण न छोटे होते हैं न बड़े, उसी तरह द्रव्य भी गुणोंसे न छोटा होता है न बड़ा । ऐसी व्यवस्था है। यहां आत्मा द्रव्य और उसके ज्ञान गुणको लेकर तर्क उठाया गया है कि यदि आत्मज्ञान गुणसे छोटा माना जायगा तो निवना ज्ञान गुण आरमासे बड़ा होगा उतना ज्ञानगुण अपने आधार द्रव्यके विना रह नहीं सका, कदाचित् रहेगा तो अचेतन द्रव्यके भाधार रहकर चैतन द्रव्यके माधारके विना नरूप होकर कुछ भी जाननेके कामका न करसकेगा। जैसे जड़ नहीं जानता है तैसे वह ज्ञान जड़ होता हुमा कुछ न जानेगा, सो यह बात हो नहीं सक्ती क्योंकि जो नान नहीं सक्ता है उसको ज्ञान कह ही नहीं सक्ते । जैसे यदि कहें कि अग्निसे उसका उष्ण गुण अधिक है अग्नि उससे छोटी है तब जितना उष्णगुण अग्नि विना माना जायगा वह अग्निके आधार विना एक तो रह ही नहीं सका, यदि रहे तो उसको ठंडा होकर रहना होगा अर्थात अग्निके विना उष्ण गुण जलानेकी क्रियाको न कर सकेगा सो यह वात असंभव है क्योंहि तब त ने उसे ही उष्णगुण कहसके सो अग्निके आधार हुआ (ण जाणादि नहीं होसक्ता क्योंकि उष्णगुणका आधार ज्ञानसे कम या छोटा मगुणको जानना चाहिये । ज्ञान गुण गुण ठंडा हो जायगा धर शन्य व जड होजायगा सो यह
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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