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________________ mmandoanumanimuanwarimaandamananwwww श्रीमचनसार भाषाटीका। [९५ . मात्मा गुणी हे ज्ञान गुण है। इनका तादात्म्य सम्बन्ध है जो कभी मिट नहीं सका । ज्ञान उसे कहते हैं जो सर्व ज्ञेयोंको जान सके। नितने द्रव्य हैं उन सबमें प्रमेयत्वनामा साधारण गुण व्यापक है । मिस गुणके निमित्तसे पदार्थ किसी न किसीके ज्ञानका विषय हो वह प्रमेयत्व गुण है। मात्माका निरावरण शुद्ध ज्ञान तब ही पूर्ण और शुद्ध कहा मासक्ता है जब यह सर्व जाननेयोग्य विषयको जान सके । इसी लिये केवली सर्वज्ञ भगवान के सर्व पदार्थ, गुण, पर्याय एक साथ झलकते रहते हैं । जब तक ज्ञान गुणमें ज्ञानावरणीय कर्मका बावरण थोड़ा या बहुत रहता है तबतक ज्ञान सब पदाथोको एक साथ नहीं जान सका है। थोड़े थोड़े पदार्थीको नानकर फिर उनको छोड़ दूसरोंको जानता है ऐसा क्रमवर्ती क्षयोपशमिक ज्ञान है । मतिज्ञानमें अवग्रह, ईहा, भवाय और धारणा ये चार ज्ञानको श्रेणियां क्रमसे होती हैं तब कहीं इंद्रिय या मनमें प्राप्त पदार्थका कुछ बोध होता है ऐसा ज्ञान केवली भगवानके नहीं है । क्ष विज्ञानके होते ही क्षयोपशमिक ज्ञान चारों नष्ट होनाते हैं। वास्तवमें ज्ञान एक ही है। मावरण कम अधिकको अपेक्षासे ज्ञानके मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अदविज्ञान तथा मनःपर्ययज्ञान ऐसे चार भेद हैं। जब आवरणका परदा मिलकुक हट गया तब ज्ञानके भेद भी मिट गए-जैसा स्वभाव मात्माका था चेपा ज्ञान स्वभाव प्रगट होगया। चार ज्ञानोंकी अपेक्षासे इस स्वाभाविक ज्ञानको केवलज्ञान कहते हैं । गितसमय क्षीणमोह गुणस्थानमें विटकर संतर्मुह तक आत्मानुभव किया जाता है उसी समय भात्मानुभवरूप
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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