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________________ श्रीमवचनसार पापाटीका। [९३. मुख्यता करके " जोहि सुदेण" इत्यादि सूत्र चार हैं। मागे वर्तमानकालके ज्ञानमें तीनकालकी पर्यायोंके जानपनेको कहने आदिकी मुख्यतासे "तकालिगेव सव्वे" इत्यादि सुत्र पांच हैं। आगे केवलज्ञान बन्धका कारण नहीं है न रागादि विकल्प रहित छमस्थका ज्ञान बन्धका कारण है किन्तु रागादिक बन्धके कारण हैं इत्यादि निरूपणकी मुख्यतासे " परिगमदिणेय " इत्यादि सूत्र पांच हैं । भागे केवलज्ञान सर्वज्ञान है इसीको सर्वज्ञपना करके कहते हैं इत्यादि व्याख्यानकी मुख्यतासे "तकालियमिवरं " इत्यादि गाथाएं पांच हैं । आगे ज्ञान प्रपंचको संकोचा करनेकी मुख्यतासे पहली गाथा है तथा नमस्कारको कहते हुए दूसरी है। इस तरह "ण वि परिणमदि" इत्यादि गाथाएं दो हैं। इस तरह ज्ञान प्रपंच नामके तीसरे अन्तर अधिकारमें तेतीसा गाथाओंसे माठ स्थलोंसे समुदाय पातनिका पूर्ण हुई। ____ आगे कहते हैं कि केवळज्ञानी मतीन्द्रिय ज्ञानमें परिणमन करते हैं इस कारणसे उनको सर्व पदार्थ प्रत्यक्ष होते हैंपरिणमदो खलु णाणं, पञ्चक्खा सव्वळपजाया। सोणेव ते विजाणदि ओग्गहपुव्वाहि किरियाहिं॥२१ परिणममानस्य खलु ज्ञान प्रत्यक्षाः सर्वद्रव्यपर्यायाः । स नैव तान् विजानात्यवग्रहपूर्वाभिः क्रियाभिः ।। २२ ॥ सामान्यार्थ-वास्तवमें केवलज्ञानमें परिणमन करनेवाले केवली भगवानके सर्व द्रव्य और उनकी सर्व पर्यायें प्रत्यक्ष प्रगट हो जाती हैं। वह केवली उन द्रव्यपर्यायोंको अवग्रहपूर्वक
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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