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________________ ८६.] श्रीप्रवचनसार भापाटीका । क्षीण होनेसे अनन्तवीय्यं नहीं बनेगा वैसे ही क्षुधा करके जो दुःखी होगा उसके अनन्त सुख भी नहीं हो सकेगा तथा रसना इन्द्रिय द्वारा ज्ञानमें परिणमन करते हुए मतिज्ञानीके केवलज्ञानका होना भी सम्भव न होगा । अथवा और भी हेतु है । भासाता 'वेदनीयके उदयकी अपेक्षा केवलीके माता वेदनीयका उदय अनन्त गुणा है । इस कारणसे जैसे शक्करके ढेरमें नीमका कण अपना. असर नहीं दिखलाता है वैसे अनन्तगुण साता वेदनीयके उदयमें असातावेदनीयका असर नहीं प्रगट होता । तैसे ही और भी बाधक हेतु हैं। जैसे प्रमत्तसंयमी आदि साधुओंके वेदका उदय रहते हुए भी मन्द मोहके उदयसे अखंड ब्रह्मचारियोंके स्त्री परीषहकी बाधा नहीं होती है तथा नव अवेयक भादिके अहमिन्द्रोंके वेदका उदय होते हुए भी मन्द मोहके उदयसे स्त्री सेवन सम्बन्धी बाधा नहीं होती है वैसे ही श्री केवली भरहंतके असाता वेदनीयका उदय होते हुए भी सम्पूर्ण मोहका अभाव होनेसे क्षुषाकी वाधा नहीं होसकी है । यदि ऐसा आप कहें कि मिथ्याष्टिसे लेकर सयोग केवली पर्यन्त तेरह गुणस्थानवी जीव आहारक होते हैं ऐसा माहारक मार्गणाके सम्बन्धमें मागममें कहा हुआ है इस कारणसे केवलियोंके माहार है ऐसा मानना चाहिये सो यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि इस गाथाके अनुसार अाहर का प्रकारका होता है। - ".. ममकम्महारो कृपलाहारा य लेप्पमाहारो। ओजमणो वि.य करतो आहारो छब्बिडो गेयो ॥१०॥
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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