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________________ न्यायशास्त्र सुबोघटीकायां षष्ठः परिच्छेदः। ६५ अर्थ--अविशदज्ञान को प्रत्यक्ष मानना प्रत्यक्षाभास है। जैसे कि बौद्ध लोग अकस्मात धूम देखने से पैदा हुये अग्नि के ज्ञान को प्रत्यक्ष मानते हैं । उनका यह ज्ञान ठीक नहीं है, प्रत्यक्षाभास है ॥६॥ ___ संस्कृतार्थ-अवैशये प्रत्यक्षं प्रत्यक्षाभासमाहुः। यथा बौद्धस्थाकस्माद् धूमदर्शनाद् बह्निविज्ञानं प्रत्यक्षाभासो विज्ञेयः ॥६॥ . परोक्षाभास का स्वरूप --. वैशो पिपरोक्षं तदाभासं, मीमांसकस्य फरणज्ञानवत् । अर्थ-विशदज्ञान को परोक्ष मानना परोक्षाभास है। जैसा कि मीमांसक करणज्ञान को परोक्ष मानते हैं। यह ज्ञान उनका परोक्ष नहीं है, परोक्षाभास है ॥७॥ संस्कृतार्थ-वैशये ऽ पि परोक्षज्ञानं परोक्षाभासो व्यावय॑ते । यथा मीमांसकस्य करणज्ञानं परोक्षाभासो विज्ञेयः ॥७॥ स्मरणाभास का लक्षणনন্সি ৰিনি জাল কথাগা, জিলহুন গ देवदत्तो यथा ॥८॥ अर्थ-जिस पदार्थ का कभी धारणारूप अनुभव नहीं हुआ था, उसके अनुभव को स्मरणाभास कहते हैं । जैसे कि- जिनदत्त का स्मरण करके कहना कि वह देवदत्त। यहाँ देवदत्त को देखा नहीं था और स्मरण किया है, इसलिये यह स्मरण झूठा है । संस्कृतार्थ- अतस्मिन् तदिति ज्ञानं स्मरणाभासः । यथा जिनदत्ते स्मृते स देवदत्तः इति ज्ञानं स्मरणाभासः ।।८।। प्रत्यभिज्ञानाभास का स्वरूपसदशे लदेवेदं, तस्मिन्नेव तेन सदृशम्, यमलकवहिस्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥ ६ ॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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