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________________ अथ षष्ठः परिच्छेदः प्राभासवर्णनम् , आभासों का वर्णनततोऽन्यत्तदाभासम् ॥१॥ अर्थ- पूर्व वणित प्रमाण के स्वरूप, संख्या, विषय तथा फल से विपरीत प्रमाणस्वरूप आदिकों को स्वरूपाभास, संख्याभास, विषयाभास और फलाभास कहते हैं ॥१ __संस्कृतार्थ-पूर्वोक्तप्रमाणस्य स्वरूपसंख्याविषयफलेभ्यो विपरीतानि - (भिन्नानि) स्वरूपसंख्याविषयफलानि स्वरूपाभाससंख्याभासविषयाभासा: प्रोच्यन्ते ॥१॥ स्वरूपाभास या प्रमाणाभास के भेद.--- · अस्वसंविदितगृहीतार्थदर्शनसंशयादयः प्रमाणाभासाः ॥१॥ ___ अर्थ-- अस्वसंविदित, गृहीतार्थ, दर्शन, संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय को प्रमाणाभास कहते हैं ।।२।। - संस्कृतार्थ-अस्वसम्विदितं, गृहीतार्थज्ञानं, दर्शनं, संशयः, विपर्ययः, अनध्यवसायश्चेति सप्त प्रमाणाभासा:प्रोच्यन्ते ॥२॥ 'अस्वसम्विदितादि के प्रमाणाभाम होने में हेतुस्थविषयोपदर्शकत्वाभावात् ॥३॥ अर्थ-अपने विषय के निश्चायक नहीं होने से ये अस्वसम्बिदि! ... तादि प्रमाण नहीं है, प्रमाणाभास हैं ॥३॥ संस्कृतार्थ -अस्वसम्विदितादयः स्वस्वविषयनिश्चायकत्वाभावात प्रमाणामासाः प्रोच्यन्ते ॥३॥ হ্রত্নখগঘহীহৃাসুঘাষিয়াল ও
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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