SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ चतुर्थः परिच्छेदः प्रमाणविषयनिर्णयः, प्रमाण के विषय का निर्णयसामान्य विशेषात्मा तदर्थो विषयः ॥ १ ॥ अर्थ—सामान्य और विशेष स्वरूप अर्थात् द्रव्य और पर्याय स्वरूप वस्तु प्रमाण का विषय होता है ।। १ ॥ ___ संस्कृतार्थ-अनुगतप्रतीतिविषयत्वं नाम सामान्यत्वम् । व्यावृत्तप्रतीतिविषयत्वं नाम विशेषत्वम्, सामान्यं च विशेषश्चेति सामान्यविशेषो, तो प्रात्मानौ यस्य सः सामान्य विशेषात्मा, स तस्य प्रमाणस्य जाह्यो ऽर्थः इति तदर्थः । तथा च सामान्य विशेषोभयधर्मस्वरूपः प्रमाणग्राह्यः पदार्थः प्रमाणगोचरो भवतीति भावः ॥ १॥ विशेषार्थ- द्रव्य के बिना पर्याय और पर्याय के बिना द्रव्य किसी भी प्रमाण का विषय नहीं होता, किन्तु द्रव्य और पर्याय उभयस्वरूप पदार्थ प्रमाण का विषय होता है, एक एक को प्रमाण का विषय मानने में बहुत से दोष हैं ॥१॥ वस्तु की अनेकान्तात्मकता के समर्थन में हेतु-- अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात् पूर्वोत्तरकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तश्च ॥ २ ॥ अर्थ-- गौ गौ गौ इस प्रकार अन्वयरूप ( यह वही है ऐसे ) ज्ञान को अनुवृत्तप्रत्यय कहते हैं । तथा यह काली है, यह चितकबरी है इत्यादि भिन्न-भिन्न ( यह वह नहीं है ऐसी) प्रतीति को व्यावृत्तप्रत्यय कहते हैं । पदार्थों के कार्य को अर्थक्रिया कहते हैं, जैसे घट की अर्थक्रिया जलाहरण करना है । अर्थ के पूर्व आकार का विनाश और उत्तर प्राकार का प्रादुर्भाव इन दोनों सहित स्थिति को परिणाम कहते हैं। ( ८७ )
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy