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________________ श्रीमाणिक्यनन्दस्वामिबिरचिते परीक्षामुळे - विकल्पसिद्ध धर्मी में साध्य का नियमविकर्णासिद्धे तस्मिन् सत्तेत साध्ये ॥ २४ ॥ अर्थ-उस धर्मी के विकल्पसिद्ध होने पर सत्ता ( प्रस्तित्व या मोबूदगी ) और सत्ता ( गैरमौजूदगी ) दोनों साध्य होते हैं ॥ २४ ॥ संस्कृतार्थ - तस्मिन् धर्मिणि विकल्पसिद्धे सति प्रस्तित्वं नास्तित्वं चेत्युभे साध्ये भवतः ॥ २४ ॥ ५२ विशेषार्थ - जिस पक्ष का न तो किसी प्रमाण से अस्तित्व सिद्ध हो श्रीर न नास्तित्व सिद्ध हो उस पक्ष को विकल्पसिद्ध कहते हैं । वही न्यायदीपिका में कहा है कि – प्रनिश्चितप्रामाण्याप्रामाण्यगोचरत्वं विकल्पसिद्धत्वम् ।। २४ ॥ विकल्पसिद्ध धर्मी का उदाहरण अस्ति सर्वज्ञो, नास्ति 'खरविषाणम् ।। २५ । अर्थ – सर्वज्ञ है और गधे के सींग नहीं हैं ॥ २५ ॥ संस्कृतार्थ – सर्वशोऽस्ति सुनिश्चितासम्भवबाधकप्रमाणत्वात् । स्वरविषाणं नास्ति, अनुपलब्धेः ॥ २५ ॥ विशेषार्थ - सर्वज्ञ है, यहाँ सर्वज्ञ पक्ष ( धर्मी ) विकरसिद्ध है, उसकी सत्ता साध्य है । और खरविषाण नहीं हैं, यहाँ गधे के सींग विकल्पसिद्ध धर्मी हैं, उनकी असत्ता साध्य है । प्रमाणसिद्ध धर्मी और विकल्पसिद्ध धर्मी में साध्यश्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्म विशिष्टता साध्या ॥ २६ ॥ अर्थ - प्रमाणसिद्ध धर्मी में और प्रमाणविकल्पसिद्धधर्मी में धर्मसहित धर्मी साध्य होता हैं ।। २६ ।। संस्कृतार्थ – प्रमाणसिद्धे उभयसिद्धे वा धर्मिणि साध्यधर्मविशिष्टतं साध्या भवति ॥ २६ ॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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