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________________ ४२ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे - तर्कप्रमाण में प्रत्यक्ष, स्मृति और प्रत्यभिज्ञान तीनों की प्रावश्यकता होती है । जैसे अपने शिष्य के साथ भ्रमणार्थ गये किसी विद्वान् ने पहाड़ में धूम देखा और शिष्य से कहा कि तुम्हें याद है ? तुम अपने रसोईघर में रोज देखते हो कि जब धूम होता है तब अवश्य ही अग्नि होती है ? यह सुन कर वह अपने रसोईघर वाले धूम और अग्नि का स्मरण करता है और कहता है कि हाँ गुरुजी यह धूम उसी के समान है । इस दृष्टान्त में पहले धूम का प्रत्यक्ष हुआ, पीछे स्मरण हुआ, और फिर सादृश्य प्रत्यभिज्ञान हुआ। इसके बाद वह निश्चय करके कहता है कि जब ऐसा है तो जहाँ धूम होगा वहाँ अग्नि अवश्य होगी, क्योंकि बिना अग्नि के धुआँ हो नहीं सकता। इसी को व्याप्तिज्ञान या तर्क कहते हैं । इसमें प्रत्यक्षादि तीनों की आवश्यकता होती है । तर्कप्रमाण के बाद वह शिष्य अनुमान करता है कि इस पर्वत में अग्नि है, क्योंकि यहाँ धूम है । इसमें तर्कसहित चार प्रमाण निमित्त आगमप्रमाण में संकेतग्रहण (यह शब्द इस अर्थ को कहता है) और उसका स्मरण यह दोनों ही कारण होते हैं । तात्पर्य यह है कि इन पाँचों ही प्रमाणों में दूसरे पूर्व प्रमाणों की आवश्यकता होती है, इसलिये इन्हें परोक्ष प्रमाण कहते हैं ॥२॥ स्मृतिप्रमाणलक्षणकारणे, स्मृतिप्रमाण के लक्षण वा कारणसंस्कारोब्बोधनिबन्धाना तदित्यकारा स्मृतिः ॥३॥ अर्थ-- संस्कार (धारणा रूप अनुभव) की प्रगटता से होने वाले तथा तत् (वह) आकार वाले ज्ञान को स्मृति कहते हैं ।।३।। संस्कृतार्थ-संस्कारस्य उद्बोधः (प्राकट्यं) स: निबन्धनं यस्याः सा तथोक्ता । या धारणाख्यसंस्कारप्राकट्यकारणिका तदित्युल्लेखिनी च जायते सा स्मृतिः निगडाते ॥३॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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