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________________ ३६ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे पदार्थ और प्रकाश के जानकारणता के निषेध में युक्तिনগ্রনিৰজালবিলাসা ছিলএলাকক্কালত ৩০ अर्थ-अर्थ और आजोक ज्ञान के कारण नहीं हैं। क्योंकि ज्ञान का अर्थ तथा आलोंक के साथ अन्वय और व्यतिरेक नहीं है। जैसे केशों में होने वाले मच्छर के ज्ञान के साथ तथा रात्रि में होने वाले, उल्लू के ज्ञान के साथ ॥७॥ संस्कृतार्थ-ज्ञानम् अर्थकारणकं न भवति, अर्थान्वयव्यतिरेकानुविधानाभावात् । यबस्यान्वयाव्यतिरेको नानु विदधाति, न तत् तत्कारणकं, यवा केशोण्डुकज्ञानम् । नानु विदधते च ज्ञानमन्विायव्यतिरेको तस्मादर्थकारणकं न भवतीत्यर्थः । २-किञ्च ज्ञानं न प्रकाशकारणक, प्रकाशान्वयव्यतिरेकानु विषानाभावात् । यबस्यान्वयव्यतिरेकी नानुविदधाति न तत् तात्कारणक, यथा नक्तञ्चराणां मारादीनां ज्ञानम् । तथा चेदं शानं, तस्मात्याकाशकारणकं न भवतीति भावः ॥७॥ विशेणार्या-केश के होते हुये केश का ज्ञान होता तो कह सकते थे कि 'अर्थ' ज्ञान का कारण है। परन्तु ऐसा नहीं हो कर उल्टा ही होता है, कि जो पदार्थ (मच्छर) है नहीं, उसका तोशान होता है और यो फेश हैं उनका ज्ञान नहीं होता। इसी को धन्वायव्यतिरेक का अनाव कहते हैं । इससे सिद्ध होता है कि वर्ष के साथ ज्ञान के अन्वय और व्यतिरेक दोनों ही नहीं हैं। इसलिये जान का कारण नहीं है। इसी प्रकार मालोक के होने पर उल्लू को शान नहीं होता और प्रानोक के नहीं होने पर भी रात्रि में जाना होता है। इससे सिद्ध होता কাজক দ্বীল অন্য চায় কাতা যে ভাষা ৫ জৎ कारण के अभाव में कार्य के प्रमाण को व्यतिरेक कहते हैं।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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