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________________ २६ श्रीमाणिक्यमन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे स्वव्यायसायस्य समर्थनम्, स्वव्यवसाय का समर्थनस्वोन्मुखताया प्रतिमासनं स्वस्थ व्यवसायः ॥६॥ अर्थ-- अपने आपके अनुभव से होने वाले प्रतिभास को स्वाव्यवसाय (स्वस्वरूप का निश्चय) कहते हैं। इसमें मैं अपने को जानता हूँ ऐसी प्रतीति होती है ॥६॥ संस्कृतार्थ-स्वस्योन्मुखतया प्रतिभासनं स्वव्यवसायो निगखते। अत्र 'प्रहमात्मानं जाने' इति प्रतीति जर्जायते ॥६॥ स्वव्यवसायस्य दृष्टान्तः, स्वव्ययसाय का दृष्टान्तअर्थस्येव तदुन्मुखताया ॥७॥ अर्थ-जिस प्रकार घट पट इत्यादि शब्दों का जब हमें ज्ञान होता है तब उस ज्ञान के विषयभूत उन उन पदार्थो का ज्ञान भी हमें अवश्य होता है। उसी प्रकार जब आत्मा की ओर लक्ष्य होता है तब प्रात्मा क्या चीज है इसका भी ज्ञान अवश्य हो जाता है ॥ ७ ॥ संस्कृतार्थ-यथा यदा घटपटादिशब्दानां प्रतीति र्जायते तदा तज्ज्ञानविषयभूतानां तत्तत्पदार्थानां ज्ञानमपि अस्माकमवश्यं जायते । तथा यदात्मानं प्रति लक्ष्यं जायते तदाऽऽत्मा किम्वस्तु विद्यते एतस्यापि ज्ञानमवश्यं जायते ॥७॥ पदार्थ को जानने के समय होने वाली प्रतीतिशटमहमात्मना बेति ॥ अर्थ-मैं अपने द्वारा घट को जानता हूँ । इस ज्ञान में अहम् और आत्मना पद से स्व का निश्चय होता है और घटम् पद से परपदार्थ घट का जोष होता है। इसी प्रकार प्रमाण से सर्वत्र स्व और पर का यवसाय (ज्ञान) होता है। इसलिये प्रमाण को स्व और पर का निरचायक बन्हा है.॥८॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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