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________________ १३३ आवश्यक निबन्ध माला समाधान- कपिल आदि सर्वज्ञ नहीं हैं। क्योंकि वे सदोष हैं। भीर सदोष इसलिये हैं कि वे युक्ति और शास्त्र से विरोधी कथन करने वाले हैं । युक्ति और शास्त्र से विरोधी कान करने वाले भी इस कारण हैं कि उनके द्वारा माने गये मुक्ति आदिक तत्त्व और सर्वथा एकान्त तत्त्व प्रमाण से बाधित हैं ! अतः वे संर्वज्ञ नहीं है। अरिहन्त ही सर्वज्ञ है। . स्वामी समन्तभद्र ने भी कहा है- "हे अर्हन् ! वह सर्वज्ञ प्राप ही हैं, क्योंकि आप निर्दोष हैं। निर्दोष इसलिये हैं कि युक्ति और पागम से आपके वचन अविरुद्ध हैं- युक्ति तथा आगम से उनमें कोई विरोध नहीं प्राता। और वचनों में विरोध इस कारण नहीं है कि आपका इष्ट (मुक्ति प्रादि तत्त्व) प्रमाण से बाधित नहीं है। किन्तु तुम्हारे अनेकान्त मतरूप अमृत का पान नहीं करने वाले तथा सर्वथा एकान्त तत्त्व का कथन करने वाले और अपने को प्राप्त समझने के अभिमान से दग्ध हुए एकान्तवादियों का इष्ट (अभिमत तत्त्व) प्रत्यक्ष से बाधित है।" इसलिये अरिहन्त ही सर्वज्ञ हैं।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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