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________________ ११२ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे-- संस्कृतार्थ--अग्निमानयं प्रदेशो, धूमवत्वात्, यदित्थं तदित्यं, यथा महानसः, धूमदाश्चायम् । अत्रानुमानप्रयोगे प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयानां चतुर्णामवयवानामेव प्रयोगो विहितो; निगमनं तु परित्यक्तम् । अतोऽयप्रयोगो बालप्रयोगाभासो विज्ञेयः ॥४८॥ उलटे प्रयोग के बालप्रयोगाभासत्व-~तस्मादग्निमान धूमवान् चायाम् ॥४९॥ अर्थ--धूमवाला होने से अग्निवाला है और यह भी धूमवाला है। यहां दृष्टान्त के बाद उपनय बोलना चाहिये कि उसी तरह यह भी धूमवाला है। फिर निगमन बोलना चाहिये कि 'इसी से यह अवश्य ही अग्नि वाला है, परन्तु इस सूत्र में उपनय और निगमन विपरीतता से कहे गये हैं, इसलिये यह बालप्रयोगाभास है ॥४६।। ___ संस्कृतार्थ--दृष्टान्तानन्तरम् उपनयः प्रयोक्तव्यः, यत्तथा चायं धूमवान् । ततश्च निगमनं प्रयोक्तव्यम्, यत्तस्मादग्निमान् । किन्त्वत्र सूत्रे उपनयनिगमने वैपरीत्येन प्रयुक्त, अतोऽयम्प्रयोगो बालप्रयोगाभासो विज्ञेयः ॥४६॥ उल्टे प्रयोग के बालप्रयोगाभासत्व में हेतु-- स्पष्टतया प्रकृतप्रतिपत्तेरयोगात् ॥५०॥ अर्थ-अनुमानवयवों का क्रमहीन प्रयोग करने पर प्रकृत अर्थ का स्पष्टता से ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होता, इसलिये वह बाल प्रयोगाभास है ॥५०॥ संस्कृतार्थ-अनुमानावयवानां क्रमहीनप्रयोगे प्रकृतार्थस्य स्पष्टतया ज्ञानं नो जायते । अतः सः बालप्रयोगाभास: प्रोच्यते ॥५०॥ आगमाभासस्य लक्षणम् आगमाभास का लक्षण-- রক্সাক্ষাত্রেঅলাভজ্বাললাগা।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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