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________________ में केवल चार विभाग हैं, यथा मित्र-लाभ, सुहृदय-भेद, विग्रह और सन्धि । पञ्चतन्त्र का पहला मित्र-भेद नामक तन्त्र हितोपदेश में दूसरे स्थान पर है । विग्रह और सन्धि नामक विभागों की कल्पना इसमें नारायण भट्ट ने नये ढंग से की है जिनमें बहुत सी नई कथाएँ भी जोड़ दी गई हैं । पञ्चतन्त्र का तीसरा तन्त्र काकोलूकीय उस रूप में हितोपदेश में नहीं मिलता, किन्तु उसकी जगह कपूर द्वीप के राजा हिरण्यगर्भ हंस और विन्ध्यगिरि के राजा चित्रवर्ण मयूर के बीच विग्रह और सन्धि की कथा है । पञ्चतन्त्र का चौथा तन्त्र लब्धप्रणाश हितोपदेश में नहीं मिलता और पाँचवें तन्त्र की कथाएँ हितोपदेश के तीसरे और चौथे भाग में मिली हुई हैं । नारायण भट्ट ने हितोपदेश की रचना में दक्षिण भारतीय पञ्चतन्त्र से सहायता ली । मूल पञ्चतन्त्र के गद्य-भाग का कम-से-कम तीन बटा-पाँच और पद्य भाग का कम-से-कम एक-तिहाई अंश हितोपदेश में या गया है । (५) व (६) बृहत्कथा-मंजरी और कथासरित्सागर दोनों के अन्तर्गत शक्तियशालम्त्रक में पञ्चतन्त्र की कथा आती है । किन्तु पञ्चतन्त्र के इन रूपों में मूल ग्रन्थ का कलात्मक रूप बिलकुल लुप्त हो गया है । वह निष्प्राण संक्षेप मात्र है । बृहत्कथा के अनुसन्धानकर्ता श्री लाकोते का विचार है कि मूल बृहत्कथा मैं पञ्चतन्त्र का कोई स्थान न था । हो सकता है कि पञ्चतन्त्र की लोकप्रियता के कारण पैशाची बृहत्कथा में किसी समय संस्कृत - पञ्चतन्त्र का सार ले लिया गया हो और उसके आधार पर क्षेमेन्द्र तथा सोमदेव ने फिर संस्कृत में अनुवाद किया हो । क्षेमेन्द्र ने काश्मीर में प्रचलित तन्त्राख्यायिका का भी उपयोग किया, क्योंकि मूल पञ्चतन्त्र में प्राप्य किन्तु क्षेमेन्द्र में प्राप्त पाँच कहानियाँ ऐसी हैं जो तन्त्राख्यायिका में पाई जाती हैं । (७) पश्चिम भारतीय पञ्चतन्त्र की परम्परा वह है जिसका एक रूप निर्णयसागर प्रेस से छपा हुआ पञ्चतन्त्र का संस्करण है । इसी का दूसरा रूप बम्बई संस्कृत सीरीज़ का संस्करण है । इस वाचना को विद्वान् लोग पञ्चतन्त्र की सादी या अनुपवृ हित वाचना ( Textus simplicior) मानते हैं । इस वाचना का रूप एक सहस्र ईसवी के लगभग बन
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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