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________________ -tu पञ्चतन्त्र कारीगर । साम इत्यादि उपायों द्वारा सजे जाल लेकर रात-दिन वे उनकी राह देखते हैं। . अथवा ठीक ही कहा है कि "सों का, खल पुरुषों का और दूसरों का धन चोरी करने वालों के मतलब नहीं गँठते, इसीलिए तो दुनिया बनी है। "भूख से व्याकुल : -- चूहे को खा जाने की इच्छा करता है , उस सर्प को कार्तिकेय का मोर खाना चाहता है , और सर्प के खाने वाले उस मोर को पार्वती का सिंह खा जाना चाहता है। अगर शिव के घर में ही परिजनों की यह हालत है तो दूसरे के यहाँ ऐसा क्यों न हो ? जगत् का स्वरूप - ही ऐसा है।" भूख से व्याकुल और स्वामी की दया से रहित करटक और दमनक आपस में विचार करने लगे। दमनक ने कहा,“आर्य करटक ! हमारी तो अब कोई हैसियत ही नहीं रह गई । संजीवक में अनुरक्त होकर पिंगलक ने अपने कामों से मुंह फेर लिया है । सब नौकर भी भाग गए हैं , अब क्या करना चाहिए ?" करटक ने कहा, "अगर स्वामी तेरी बात न भी माने , तो भी तुझे उससे अपने दोष दूर करने के लिए, कहना चाहिए। कहा भी है-- "विदुर ने जिस प्रकार धृतराष्ट्र को शिक्षा दी थी उसी प्रकार राजा अगर न भी सुने तो भी उसके दोष दूर करने के लिए मंत्रियों को उसे सलाह देनी चाहिए। और भी " घमंडी राजा और मतवाला हाथी अगर टेढ़े रास्ते जायं तो - उनके पास रहने वाले महामात्र (महावत और मंत्री ) निन्दा 'के पात्र होते हैं। तू ही इस घासखोर को स्वामी के पास लाया, इसलिए तूने अपने हाथों ही जलते अंगारे ग्वींचे।" दमनक ने कहा, "हाँ.ठीक है, यह मेरा ही दोष है,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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