SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ पञ्चतन्त्र "सौ का मालिक हजार चाहता है, हजार का मालिक लाख चाहता है, लखपती राज्य चाहता है और राज्यासीन स्वर्ग चाहता है। "बुढ़ापे से बाल सफेद हो जाते हैं , कमजोर दांत टूट जाते हैं, आँखें कमजोर पड़ जाती हैं, कान बहरे हो जाते हैं, केवल लालच ही जवान हो जाता है।" सबेरे उस तालाब के पास आकर बन्दर ने राजा से कहा, “देव! सूरज के आधा उगने पर तालाब में पैठने वालों को सिद्धि मिलती है, इसलिए सबको इकट्ठे होकर ही घुसना चाहिए । आप मेरे साथ घुसियेगा जिससे पहले देखे स्थान पर पहुँचकर मैं आपको बहुत सी रत्नमालाएं दिखला सकूँ ।” . सब लोगों के तालाब में घुसने पर राक्षस ने उन्हें खा डाला। उनके देर करने पर राजा ने कहा, “अरे सरदार! हमारे साथी इतनी देर क्यों लगा रहे हैं ?" यह सुनकर जल्दी से वह पेड़ पर चढ़कर राजा से बोला, “अरे बदमाश राजा ! पानी में रहने वाले राक्षस ने तेरे साथियों को खा डाला। मुझे परिवार नष्ट होने के वैर का बदला मिल गया। अब तू जा। मालिक जानकर मैंने तुझे वहां नहीं घुसाया। कहा भी है-- "जैसे को तैसा, हिंसक से बदला, दुष्ट के प्रति दुष्टता, इसमें मैं दोष नहीं मानता। तूने मेरा खानदान उजाड़ डाला और मैंने तेरा। यह सुनकर क्रोध , से राजा पैदल पांव आये रास्ते से लौट गया। राजा के जाने के बाद अघाया हुआ राक्षस खुशी-खुशी बन्दर से बोला "शत्रु मारा गया , मित्र बना , रत्नमाला भी रह गई, हे साधु बन्दर, तूने अच्छा नाल से पानी पिया।" इसलिए मैं कहता हूं कि "जो लालच से काम करता है और नतीजे के बारे में नहीं सोचता,. चन्द्र राजा की तरह उसकी हँसी होती है।" यह कहकर उसने चक्रधर से फिर कहा, "मुझे कह तो मैं घर जाऊं।" चक्रधर ने कहा, “भद्र! विपत्ति के लिए धन इकट्ठा किया जाता है, तो फिर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy