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________________ २८४ पञ्चतन्त्र मुझे अपनी जवान और रूपवती कन्या देगा । उससे मुझे लड़का होगा । उसका नाम मैं सोमशर्मा रखूंगा । उसके घुटनों के बल चलने लायक होने पर मैं पुस्तक पढ़ता हुआ कहूंगा, 'इसे घोड़साल के पीछे ले जाओ, जिससे मैं पढ़ सकूं ।' इसके बाद सोमशर्मा मुझे देखकर अपनी मां की गोद से चलता हुआ घोड़ों के खुरों के पास से होता हुआ मेरी ओर आयगा, इस पर मैं गुस्से से ब्राह्मणी से कहूंगा, 'अपने बच्चे को पकड़ ।' घर के काम में लगे रहने से वह मेरी बात न सुनेगी। इस पर मैं उठकर उसे एक लात मारूंगा।" इसी ध्यान में लगे हुए ब्राह्मण ने एक लात मारी जिससे घड़ा फूट गया और सत्तुओं से उसका शरीर पीला पड़ गया । इसलिए मैं कहता हूं कि, “भविष्य काल के लिए जो असंभाव्य प्रचार करता है, वह सोमशर्मा के पिता की तरह पीला होकर सोता है ।" सुवर्णसिद्धि ने कहा, "ठीक। इसमें क्या दोष है ? सब लोग लोभ से पीड़ित रहते हैं । कहा भी है कि "जो लालच से काम करता है और नतीजे के बारे में नहीं सोचता, चन्द्र राजा की तरह उसकी हँसी होती है ।" चक्रधर ने पूछा, "यह कैसे ?” उसने कहा चन्द्र राजा और बन्दरों के दल की कथा "किसी नगर में चन्द्र नामक राजा रहता था। उसके लड़के बन्दरों के दल के साथ रोज खिलवाड़ करते हुए उन्हें खाना-पीना देकर पुष्ट करते थे । बन्दरों का सरदार शुक्र, बृहस्पति और चाणक्य के समान बुद्धिमान होने से सबको नीति पढ़ाता था। उस राजमहल में छोटे राजकुमारों के चढ़ने लायक मेढ़ों का एक दल था। उनमें से एक मेढ़ा चटोरपन से रात-दिन रसोई में जो कुछ भी देखता घुसकर खा जाता था । रसोईदार भी काठ, मिट्टी, कांसे, जिस किसी के बने बरतन पाते थे उससे उसे मारते थे । उस बन्दरों के सरदार ने यह देखकर सोचा, "रसोईदारों और मेढों की लड़ाई की बला बन्दरों के सिर आयेगी । इस मेढ़े को अन्न का स्वाद लग
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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