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________________ २७८ पञ्चतन्त्र " मेढक ने कहा, "भलेमानसो! मुझ भागने वाले की एक ही बुद्धि है इसलिए मैं अपनी पत्नी के साथ किसी दूसरे तालाब को जाता हूं।" यह कहकर वह मेढक रात में किसी दूसरे तालाब में चला गया। धीवरों ने सबेरे आकर बुरे-भले जलचर, मच्छ, कछुए, मेढक, केकड़े इत्यादि पकड़ लिए । अपनी स्त्रियों के साथ शतबुद्धि सहस्रबुद्धि ने भी भागते हुए चालों के जानने से टेढ़े मेढ़े जाकर अपने को कुछ देर तक बचाया। पर अन्त में जाल में फंसकर वे मारे गए। दोपहर में वे सब धीवर खुश होकर अपने घर लौट गए। भारी होने से एक धीवर शतबुद्धि को अपन कंधे पर डाल और सहस्रबुद्धि को लटका कर ले चला । बावली के किनारे उन्हें इस तरह ले जाते देखकर मेढक ने अपनी स्त्री से कहा --- "सौ अक्ल सिर पर चढ़ा है और हजार अक्ल लटक रहा है । हे भद्रे! मैं बेचारा एकबुद्धि साफ पानी में खेल रहा हूं।" इसलिए मैं कहता हूं, 'सौ अक्ल सिर पर चढ़ा है और हज़ार अक्ल लटक रहा है। केवल बुद्धि ही सब-कुछ नहीं है।" सुवर्णसिद्धि ने कहा, "ऐसा होने पर भी मित्र की बात नहीं टालनी चाहिए। तूने क्या किया? मना करने पर भी लालच और विद्या के घमंड में तू नहीं ठहरा । अथवा ठीक ही कहा है-- "मामा ! तुमने खूब गाया, मेरे मना करने पर भी तू नहीं रुका। तेरे गले में यह अपूर्व मणि बँधी है जो तेरे गाने का इनाम है।" चक्रधर ने कहा, “यह कैसे ?" सुवर्णसिद्धि कहने लगा .. गवैये गधे और सियार की कथा. "किसी नगर में उद्धत नाम का एक गधा रहता था। वह हमेशा धोबी के यहाँ बोझ ढोकर रात में मनमानी तौर से घूमता था और सबेरे बंधने के डर से स्वयं धोबी के घर आ जाता था, तो धोबी उसे बांध देता था। रात में खेतों में घूमते हुए उसकी एक सियार से दोस्ती हो गई। वह मोटाई से बाड़ तोड़कर ककड़ी के खेत में सियार के साथ घुस जाता था और वे दोनों मनमानी
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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