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________________ पञ्चतन्त्र २७४ यह जीव मरा पड़ा है, अपनी विद्या के प्रभाव से हम इसे जिला देंगे।" इस पर एक ने उत्सुकता से हड्डियां इकट्ठी की, दूसरे ने चमड़ा, मांस और लहू पैदा किया। जब तीसरा उसमें जान फूंकने जा रहा था तो सुबुद्धि ने मना किया, "अरे ठहर ! तू कहता है यह सिंह बन रहा है। अगर तू इसे जिला देगा तो वह सबको मार डालेगा।" उसने जवाब दिया, "धिक्कार है तुझे, मूर्ख! मैं अपनी विद्या को विफल कैसे कर सकता हूं?" इस पर उसने कहा, फिर मेरे पेड़ पर चढ़ने तक ठहर।" ऐसा करने पर जब सिंह के जान पड़ी तो उसने उठकर तीनों को मार डाला और सुबुद्धि पेड़ से नीचे उतरकर अपने घर चला गया। इसीलिए मैं कहता हूं कि "विद्या नहीं , बुद्धि बड़ी गिनी जाती है ; बेवकूफ आदमी सिंह में जान डालने वालों की तरह मारे जाते हैं। और भी कहा है -- ''सब शास्त्रों में कुशल होने पर भी लोकाचार न जानने वाले मूर्ख पंडितों की तरह सबकी हँसी होती है।" चक्रधर ने कहा, “यह कैसे ?" उसने कहा-- मूर्ख पंडित की कथा "एक नगर में चार पंडित मित्रतापूर्वक रहते थे। एक बार आपस में उनकी राय हुई, "अरे! हम सबको परदेश जाकर विद्या से धन पैदा करना चाहिए।" दूसरे दिन सब ब्राह्मण आपस में निश्चय करके विद्या पढ़ने कन्नौज चले गए। वहाँ पाठशाला में जाकर वे पढ़ने लगे। इस तरह बारह वर्षों तक ध्यान लगाकर पढ़ने से वे पंडित हो गए। इस पर चारों ने आपस में मिलकर कहा, "हम सारे सब विद्याओं में पंडित हो गए, अब उपाध्याय से पूछकर हमें घर चलना चाहिए।" यह कहकर सब ब्राह्मण उपाध्याय की आज्ञा लेकर अपने पोथी-पत्रों के साथ निकल पड़े। चलते-चलते दो रास्ते आजाने पर वे बैठ गए। उनमें से एक बोला, “हमें किस रास्ते से चलना चाहिए?" इसी बीच में उस शहर में कोई बनिया मर गया था और उसे
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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