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________________ ہیم पञ्चतन्त्र को जिसके सिर पर चक्रघूम रहा था, देखा। उसने जल्दी से उसके पास जाकर उससे पूछा , "तू कौन है ? तेरे सिर पर यह चक्र क्यों चक्कर खा रहा है ? अगर कहीं पानी मिले तो बता ?" उसके ऐसा कहने पर वह चक्र उसका सिर छोडकर ब्राह्मण के सिर आ धमका । ब्राह्मण ने कहा, "यह क्या ?" उसने जवाब दिया , “मेर सिर पर भी वह ऐसे ही सवार हो लिया था।" ब्राह्मण ने कहा, "फिर यह मेरे सिर से कैसे उतरेगा; मुझे बड़ी तकलीफ हो रही है।" उसने जवाब दिया, “तेरी तरह जब कोई दूसरा सिद्धिति लेकर यहां आकर तुझसे बात करेगा तो उसके सिर चढ़ जायगा।" ब्राह्मण ने कहा, "तू यहां कितने दिनोंतक था ।" उसने जवाब दिया, "इस समय दुनिया में कौन राजा है ?" ब्राह्मण ने जवाब दिया, “वीणावत्स राजा।" उसने कहा, "कालसंख्या तो मैं नहीं जानता, पर जिस समय राम राज्य कर रहे थे उसी समय गरीबी से परेशान होकर सिद्धिति लेकर मैं इस रास्ते से आया था। वहां एक दूसरे आदमी को सिर पर चक्र लिये देखकर मैंने पूछा और इसीलिए मेरी यह हालत हो गई।" ब्राह्मण ने कहा, "भद्र! इस हालत में तुझे खाना-पीना कैसे मिलता था ?" उसने कहा, “भद्र ! कुबेर ने अपना खजाना गायब होते देखकर सिद्धों को ऐसी धमकी दी है, इसलिए यहां कोई सिद्ध नहीं आता। जो कभी आ जाता है तो वह भूख, प्यास, नींद, बुढ़ापे और मुत्यु से अलग होकर केवल इसी तरह दुःख उठाता है। मुझे आज्ञा दे मैं छूट गया हूं, अब मैं अपने घर जाऊंगा।" यह कहकर वह चला गया। ब्राह्मण के देर लगने पर सुवर्णसिद्धि उसे खोजते हुए उसके पैरों के निशानों के पीछे-पीछे चलता-चलता एक वन में पहँचा और उसे लोह-शान शरीर से, सिर पर एक चक्र को घूमते और रोते-चिल्लाते, देखा। उसके पास जाकर उसने आंखें भीगी करके कहा, “भद्र! यह सब कैसे हुआ ?" उसने कहा, "अभाग्य से ।" उसने कहा, “इसका कारण कहीं।" उसके ऐसा पूछने पर उसने चक्र का सब हाल-चाल कह दिया। यह सुनकर उसकी निन्दा करते हुए उसने कहा , “अरे! बहुत मना करने पर भी तूने मेरी बात नहीं मानी । अब क्या किया जाय ? विद्वान और कुलीन भी मूर्ख होते हैं । अथवा
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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