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________________ ৩০ पञ्चतन्त्र करके वे उनके साथ उनके मठ गये। वहां उन्होंने उनसे पूछा, " तुम सब कहाँ से आ रहे हो ? कहां जा रहे हो? तुम्हारा प्रयोजन क्या है ?" उन सबने कहा , “हम सब सिद्धियात्रिक हैं। हमारा निश्चय है कि हम वहीं जायँगे जहां या तो धन मिलेगा या मौत । कहा भी है -- "मौका मिलने पर अपने को जोखिम में डालकर साहसी पुरुष दुष्प्राप्य और मनचाहा धन पैदा करते हैं। और भी "पानी कभी आसमान से गिरता है, खोदने पर वह पाताल से मिलता है, इसलिए भाग्य का भरोसा नहीं करना चाहिए। पुरुषार्थ ही बलवान है । "पुरुष के पुरुषार्थ से ही पूरी-पूरी कामयाबी होती है, और जिसे 'दैव' कहा है , वह अदृश्य नायक पुरुष का गुण है। "साहसिक बड़े लोगों से भय पाते हैं पर अपने प्राणों को तिनके जैसा मानते हैं। अहो! उदार पुरुषों का यह आचरण अद्भुत है। "अपने अंगों को बिना दुःख दिये इस संसार में तरह-तरह के सुख नहीं मिलते । मधु को मारने वाले विष्णु ने समुद्र मथने से ही थकी अपनी बाहुओं से लक्ष्मी का आलिंगन किया था। “पानी में रहकर जो सदा चार महीने सोता है, ऐसे विष्णु के नरसिंह हो जाने पर भी उनकी पत्नी चंचला क्यों न हो ? "पुरुष जब तक पुरुषार्थ नहीं करता तब तक उसे परमात्मा नहीं मिल सकता ; जब सूर्य तुला राशि में आता है तब वह इस संसार में बादलों पर विजय पाता है । इसलिए आप हमसे धन पाने का कोई उपाय यथा विवर-प्रवेश, शाकिनी साधन, श्मशान सेवन, महामांस बेचना (आदमी का गोश्त) और साधकवति इत्यादि उपायों में से कहिए । सुना गया है कि आप में अपूर्व । शक्ति है। कहा भी है -- "बड़े ही बड़े काम कर सकते हैं ; समुद्र बिना कौन बड़वानल धारण
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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