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________________ २६८ पञ्चतन्त्र का दिल प्रसन्न करने वाला होता है। "लोग कहते हैं 'चंदन ठंडा है,' पर पुत्र के अंगों का स्पर्श चंदन से भी अधिक ठंडा है। "लोग पुत्र के लाड़-प्यार की जितनी इच्छा करते हैं उतनी मित्र के, पिता के, हितेच्छु के, और पालक के सम्बंध की परवाह करते।" एक समय खाट पर अपने बच्चे को सुलाकर पानी का घड़ा लेकर ब्राह्मणी ने अपने पति से कहा, "ब्राह्मण! मैं पानी लेने तालाब पर जाती हूं, तुम इस न्योले से बच्चे को बचाना।" उसके जाने के बाद ब्राह्मण भी घर सूना छोड़कर भीख मांगने कहीं निकल गया। इसी बीच भाग्यवश वहां एक काला सांप बिल से निकला । न्योले ने अपने स्वभाव-शत्रु के पास जाकर भाई को बचाने के लिए लड़ाई की और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इसके बाद महामागबाने कोरिम-खुशी वह माता के पास गया । उसके मुंह में खून लगा देखकर शंकित चित्त से 'इस दुरात्मा ने मेरे लड़के को खा लिया, यह मानकर गुस्से से उसके ऊपर ब्राह्मणी ने जल का घड़ा पटक दिया। इस तरह न्योले को मारकर रोती-कलपती जब वह घर आई तो अपने बच्चे को सोता देखा और पास में सांप के टुकड़े-टुकड़े देखकर अपने लड़के के मरने-जैसे अफसोस में वह अपना सिर पीटने लगी। इसके बाद जब दान-दक्षिणा लेकर ब्राह्मण वापस लौटा तो उसे देखकर पुत्र-शोक से दुखी ब्राह्मणी बकने लगी, "अरे लालची! लालच के मारे तूने मेरा कहा नहीं किया, इसलिए अब पुत्र की मृत्यु-जैसे वृक्ष का फल खा । अथवा ठीक ही कहा है कि "बड़ा लालच नहीं करना चाहिए, लालच छोड़ना ही चाहिए, ___ अत्यन्त लालची के सिर के ऊपर चक्का घूमता है।" ब्राह्मण ने कहा, "वह कैसे ?" वह कहने लगी -- चक्रधर की कथा "किसी शहर में चार ब्राह्मण-पुत्र आपस में मित्र होकर रहते थे। गरीबी
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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