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________________ ၃ पञ्चतन्त्र आशीर्वाद लेकर,व्रतों का उपदेश प्राप्त करके तथा अपने दुपट्टे की गांठ बांधकर उस नाई ने विनयपूर्वक कहा, “भगवन् ! आज आप सब मुनियों के साथ मेरे घर विहार कीजिए।" जैन मुनि ने कहा , “अरे श्रावक! धर्म जानते हुए भी तू ऐसा क्यों कहता है ? क्या हम ब्राह्मण जैसे हैं कि हमें न्योता देता है ? काल योग्य परिचर्या लेकर सदा घूमते हुए भक्त श्रावक को देखकर हम उसके घर जाते हैं और उसके घर केवल जान बचाने के लिए थोड़े प्रमाण में भोजन करते हैं। इसलिए चल दे , फिर ऐसी बात मत कहना ।" यह सुनकर नाई ने कहा, "मैं आपका धर्म जानता हूं। आप लोगों को बहुत से श्रावकं बुलाते हैं। मैंने पुस्तकों के बेष्ठन के लिए बहुत से कीमती कपड़े तैयार कराए हैं तथा पुस्तकों को लिखने के लिए लेखकों को धन देने के लिए बहुत सा धन इकट्ठा किया है । इस बारे में आपको जैसा जंचे वैसा कीजिए।" ___ इसके बाद नाई अपने घर चला गया और वहां पहुंचकर खैर का एक डंडा तैयार करके दरवाजे के दोनों पल्ले लगाकर डेढ़ बजने के समय फिर एक बार विहार के आगे आकर खड़ा होगया और गुरु की प्रार्थना करके क्रम से बाहर निकले हुए यतियों को अपने घर लाया। वे सब भी कपड़ों के लालच से भक्त और परिचित श्रावकों को छोड़कर खुशी मन से उस नाई के पीछे चले । अथवा ठीक ही कहा है कि । "अकेले घर छोड़ने वाले , करपात्री और दिगम्बर भी इस लोक में लालच से खिंच जाते हैं, यह तमाशा तो देखो। "बूढ़े होने पर मनुष्य के बाल पक जाते हैं, बूढ़े आदमी के दांत भी कमजोर हो जाते हैं और आंख-कान भी। उसमें एक लालच ही जवान होती जाती है।” इसके बाद उसने उन सबको घर में ले जाकर चुपके से दरवाजा बन्द करके लाठी की मार से उनके सिर तोड़ डाले । मार पड़ने पर कुछ तो मर गए। जिनके सिर टूट गये वे चिल्ला-चिल्लाकर दुहाई देने लगे। उनका रोनाचिल्लाना सुनकर कोतवाल ने सिपाहियों से कहा, “अरे! इस नगर में बड़ा शोर-गुल क्यों मच रहा है ? इसलिए जल्दी जाओ।" वे सब उसकी आज्ञा से
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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