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________________ २५६ पञ्चतन्त्र कृतघ्न ! मेरे मना करने पर भी तू फिर क्यों मेरे पीछे आता है। मैं तेरे जैसे मूर्ख को नसीहत नहीं दे सकता।" यह सुनकर मगर ने कहा, “मुझ अपराधी के पहले प्रेम की याद करके तू मुझे उपदेश दे।" बन्दर ने कहा, "मैं तुझसे कुछ नहीं कहूंगा । अपनी स्त्री की बात में आकर तू मुझे समुद्र में फेंकने के लिए . ले गया था। यह बिलकुल अच्छी बात नहीं थी । यद्यपि स्त्री सब लोगों से भी प्यारी होती है, फिर भी स्त्री की बात में आकर मित्र और बंधुओं को समुद्र में नहीं फेंका जाता । अरे मूर्ख! बेवकूफी से तेरा नाश होगा यह मैंने पहले ही कह दिया। जैसे "अच्छे आदमियों की कही बातों का जो मोह से अनादर करता है, वह सिंह से जैसे ऊंट मारा गया उसी तरह मारा जाता है।" मगर ने कहा , “यह कैसे ?” बन्दर कहने लगा -- घण्टे और ऊंट की कथा "किसी नगर में उज्ज्वलक नाम का रथकार रहता था। गरीबी से बहुत तंग आकर उसने सोचा कि हमारे घर की दरिद्रता को धिक्कार है। नगर के सब लोग अपने-अपने काम में लगे हैं, लेकिन मेरे लिए इस नगर में कोई काम नहीं है । सब लोगों के चौमंजिले घर हैं मेरे ही नहीं। फिर इस बढ़ईगिरी से क्या फायदा?" यह सोचकर वह अपने देश से निकल गया। वन में थोड़ी दूर चलने के बाद उसे गुफा की तरह भयंकर वन में सूर्यास्त के समय अपने दल से छूटी हुई और प्रसव-वेदना से पीड़ित एक ऊंटनी दीख पड़ी। उस गर्भवती ऊंटनी को पकड़कर वह अपने डेरे की ओर चल पड़ा । वहां पहुंचकर उसने उस ऊंटनी को रस्सी से बांधा, फिर एक तीखी कुल्हाड़ी लेकर उसके लिए पत्ते लाने के लिए वह एक पहाड़ी जगह चला गया। वहां से बहुत-सी कोमल और नई कोपलें काटकर और उन्हें अपने सिर पर लाकर उसके सामने डाल दिया। उसने भी उन्हें धीरे-धीरे खाया । इस तरह रात-दिन खाने से वह मोटी-ताजी हो गई और उसका बच्चा भी एक बड़ा ऊंट हो गया। बढ़ई रोज ऊंटनी के दूध से अपने घर वालों का पालन-पोषण करता था ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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