SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ पञ्चतन्त्र "जिसके लिए मैंने अपना कुल छोड़ा, अपना आधा जीवन हार गया, वह मुझे छोड़ती है । कौन आदमी स्त्रियों का विश्वास कर सकता है ?" मगर ने कहा , “यह कैसे ?" बन्दर कहने लगा -- ब्राह्मणी और पंगु की कथा "किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसे अपनी स्क्री प्राणों से भी प्यारी थी । वह भी प्रतिदिन घर वालों के साथ लड़ने-झगड़ने से कभी नहीं हटती थी । इस लड़ाई से परेशान होकर वह ब्राह्मण अपनी स्त्री के प्रेम के कारण अपने घरवालों को छोड़कर अपनी ब्राह्मणी के साथ दूर देश को चला गया। घनघोर जंगल के बीच ब्राह्मणी ने उससे कहा, "आर्यपुत्र! मुझे प्यास सता रही है, थोड़ा पानी खोजिए।" उसकी बात सुनकर पानी लेकर जब वह वापस आया तो उसे मरा हुआ पाया । स्नेह की बहुलता से शोक करता हुआ जब वह रो रहा था तब आकाश से उसे यह बात सुनाई दी, "हे ब्राह्मण! अगर तू अपनी जान का आधा दे दे तो तेरी ब्राह्मणी जी जायगी।"यह सुनकर पवित्र होकर तिबाचे से ब्राह्मण ने अपनी जान का आधा दे दिया। बात के साथ-ही-साथ ब्राह्मणी जी उठी । वे दोनों पानी पीकर और जंगली फल खाकर आगे चल पड़े। इस तरह घूमते-फिरते किसी नगर के एक बगीचे में पहुँचकर ब्राह्मण ने अपनी स्त्री से कहा , “भद्रे ! जब तक मैं खाने का सामान लेकर लौटूं तब तक तू यहीं ठहरना।” यह कहकर वह शहर में चला गया । _____ उस बगीचे में रँहट घुमाते हुए एक पंगु मीठे सुर में गीत गा रहा था । उसे सुनकर कामबाण से घायल होकर उस ब्राह्मणी ने उसके पास जाकर कहा , “भद्र ! अगर तू मेरे साथ भोग नहीं करेगा तो तुझे स्त्री मारने का पाप लगेगा।" पंगु ने कहा, “मुझ लूले-लंगड़े के साथ तू क्या करेगी ?" वह बोली, “ऐसा कहने से क्या? तुझे मेरे साथ अवश्य संगम करना चाहिए।" यह सुनकर उसने वैसा ही किया। इसके बाद स्त्री ने कहा,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy