SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धप्रणाश २४३ नहीं सह सकता था।" सियार ने कहा, "मैं फिर एक बार उसे तुम्हारे पास लाऊंगा। तुम्हें आक्रमण करने के लिए तैयार होकर बैठना चाहिए।" सिंह ने कहा, “भद्र ! मुझे प्रत्यक्ष देखकर वह भागा है, फिर वह कैसे आयगा ? इसलिए दूसरे जानवर की खोज कर । सियार ने कहा, "तुम्हें इससे क्या? तुम केवल वार के लिए तैयार बैठो।" उसके बाद सियार ने गधे के रास्ते चलते हुए उसे एक जगह चरते हुए देखा । सियार को देखकर गधा बोला, " अरे भांजे ! तू मुझे अच्छी जगह ले गया। मैं तो मौत के चंगुल में फंस गया था। अच्छा यह तो बता कि वह कौन जीव है जिसके भयंकर वज्र-समान पंजे के वार से मैं बच निकला ?" यह सुनकर हँसते हुए सियार ने कहा, “भद्र! तुझे आते देखकर गधी तुझे प्रेम से भेंटने को खड़ी हुई,पर तू डरपोक भाग निकला। वह तेरे बिना नहीं रह सकती । तुझे भागते देखकर रोकने के लिए उसने पंजा मारा, किसी और दूसरी वजह से नहीं, इसलिए वापस चल । तेरे बिना वह बिना खाए जान देने बैठी है और कहती ह, 'यदि लम्बकर्ण मेरा पति न हुआ तो मैं आग या पानी में घुसकर प्राण दे दूंगी। मैं उसका वियोग नहीं सह सकती।' इसलिए कृपाकर वहां चल, नहीं तो तुझे स्त्री-हत्या का पाप लगेगा और भगवान काम भी तुझ पर कोप करेंगे। कहा भी है "झूठे फल को खोजने वाले जो कुबुद्धि मूर्ख सब इच्छाओं को पूरी करने वाली जयिनी, कामदेव की स्त्री रूपी महामुद्रा, को छोड़कर चल देते हैं, उनके ऊपर कामदेव ने निर्दयतापूर्वक वार करके उन्हें नंगा तथा सिरमुंडा बना दिया है ; कितनों को गेरुवा कपड़ा पहनने वाला, जटाधारी और बहुतों को कापालिक बना दिया है।" विश्वासपूर्वक उसकी बातें सुनकर गधा फिर से उसके साथ चल पड़ा। अथवा ठीक ही कहा है-- "जानते हुए भी आदमी दुर्भाग्यवश निन्दनीय काम करता है। इस संसार में निन्दनीय काम किसे अच्छा लगता है ?"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy