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________________ ၃ခု पञ्चतन्त्र जाता है उससे पितरों के साथ सब देवगण अपना मुख फेर लेते हैं।" यह कहकर उसने उसे जामुन के फल दिये । मगर भी उन्हें खाकर उसका देर तक संग-साथ करके पुनः अपने घर चला गया। इस तरह रोजरोज बन्दर और मगर जामुन की छाया में बैठकर तरह-तरह की शास्त्रचर्चा में अपना समय बिताते थे । वह मगर भी खाने से बचे जामुन अपने घर लौटकर स्त्री को देता था। __ एक दिन मगरी ने मगर से पूछा , “अमृत की तरह ये फल तुझको कैसे मिलते हैं ?" उसने कहा, "मेरा एक परम मित्र रक्तमुख नाम का बन्दर है, वह प्रेम से इन फलों को देता है ?" मादा ने कहा, "जो हमेशा अमृत की तरह ऐसे फल खाता है उसका दिल भी अमृतमय हो गया होगा। इसलिए अगर अपनी स्त्री की तुझे आवश्यकता है तो उसका दिल तू मुझे दे दे, जिसे खाकर बुढ़ापे और मृत्यु से छूटकर मैं तेरे साथ भोग करूं।" मगर ने कहा , “भद्रे ! ऐसा मत कह । वह मेरा भाई हो गया है और दूसरे फलदाता। इसलिए वह मारा नहीं जा सकता। झूठा हठ छोड़ । कहा भी है -- "एक जगह वाणी मनुष्य को जन्म देती है और दूसरी जगह माता। पर वाग्बंधु सहोदर भाई से भी अधिक बन्धु गिना गया है।" मगरी ने कहा , “तूने कभी भी मेरी बात नहीं टाली । जरूर कोई बंदरिया होगी, जिसके प्रेम में तू वहां सारा दिन जाता है। मैंने अब तुझे अच्छी तरह से जान लिया क्योंकि "तू खुशी से मेरी बात का जवाब नहीं देता । मुझे मनचाही चीज नहीं देता । रात में अनेक बार आग की लपट की तरह गरम गरम साँसें जोर से छोड़ता है। गला भेंटने में ढिलाई दिखलाता है -- और चुम्बन में आदर नहीं करता। इसलिए हे धूर्त! तेरे हृदय में • मुझसे भी बढ़कर कोई दूसरी प्रियतमा बसी है।" उस मगर ने अपनी पत्नी का पैर पकड़ लिया और उसे गोद में
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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