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________________ २२० पञ्चतन्त्र ठीक ही कहा है - "भयभीत मन वालों के हाथ-पैर नहीं चलते, बात नहीं बोली जाती और शरीर अधिक कॉपता है। इसलिए मैं ही उसे बुलाऊं जिससे भीतर आने पर वह मेरा भोजन बने ।" यह सोचकर सिंह ने सियार को बुलाया । सिंह की आवाज से गुफा गूंज गई और सैकड़ों प्रतिरव दूर के जानवरों को भी डराने लगे। भागते हुए सियार ने भी यह पढ़ा-- "जो पहले ही अनागत काम करता है , वह शोभा पाता है । जो ऐसा नहीं करता उसे सोचना पड़ता है। इस वन में रहते बूढ़े होकर भी मैंने बिल की बात कभी नहीं सुनी। 'यह मानकर तुम भी मेरे साथ चलो।" यह कहकर अपने परिजनों और अनुयायियों के साथ रक्ताक्ष दूर देश चला गया । ___रक्ताक्ष के चले जाने पर प्रसन्न मन स्थिरजीवी ने सोचा, “रक्ताक्ष का जाना मेरे लिए कल्याणकर है, क्योंकि वह दूर तक देखने वाला था। ये सब बेवकूफ हैं। इन्हें अब मैं सुखपूर्वक मार सकूँगा । कहा भी है - "जिस राजा के पुश्तैनी मंत्री दीर्घदर्शी नहीं हैं उस राजा का शीघ्र ही नाश होता है। अथवा ठीक ही कहा है - "जो मंत्री अच्छी नीति को छोड़कर लोभवश उलटी नीति से राजा की सेवा करते हैं उन्हें चतुर मंत्री के रूप में शत्रु मानना चाहिए।" यह सोचकर अपने घर (कुलाय) वह प्रतिदिन गुहा जलाने के लिए एक-एक बनकाठ इकट्ठा करने लगा। वे मूर्ख उल्लू यह नहीं जानते थे कि लकड़ी का वह ढेर उनके जलाने के लिए बढ़ रहा था । अथवा ठीक ही कहा है - - "भाग्य का मारा आदमी दुश्मन को दोस्त बनाता है, मित्र से द्वेष करता है और उसका नाश करता है , शुभ को अशुभ मानता है और पाप को कल्याणकर ।"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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