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________________ २१८ पञ्चतन्त्र कुछ ही दिनों में वह मोर की तरह मजबूत हो गया । रक्ताक्ष ने स्थिरजीवी को इस तरह पलते - पुसते देखकर अचंभे में आकर राजा और मंत्रियों से कहा, “मंत्रिजन और आप मूर्ख हैं ऐसा मैं मानता हूं ।” कहा भी है“पहले तो मैं मूर्ख, दूसरे शिकारी, फिर राजा और मंत्री ; हम सब मूर्खमंडल के सदस्य हैं ।" " . उन्होंने पूछा, "यह कैसे ?" रक्ताक्ष कहने लगा- सोने की बीट देने वाले पक्षी और शिकारी की कथा "किसी पहाड़ी मुल्क में एक बड़ा पेड़ था । उस पर सिंधुक नाम का कोई पक्षी रहता था। उसकी बीट से सोना पैदा होता था। उसे पकड़ने के लिए एक समय कोई बहेलिया निकला। उसके आगे पक्षी ने बीट कर दिया । ate free ही उसे सोना बनते देखकर बहेलिये को बड़ा आश्चर्य हुआ । " अरे ! बचपन से लेकर चिड़िया फँसाने के व्यवसाय में बहुत बरस बीत गए, पर मैंने कभी भी पक्षी की बीट में सोना नहीं देखा," यह सोचकर उसने उस पेड़ पर फंदा लगाया । विश्वासपूर्वक पहले की तरह बैठा हुआ वह मूर्ख पक्षी उसी समय फंदे में फँस गया । बहेलिया भी फंदे से निकालकर उसे पिंजड़े में रखकर घर लाया, और सोचा, 'मैं इस अजीब पक्षी का क्या करूंगा? अगर कोई उसकी तासीर जानकर राजा से कह देगा तो मेरी जान आफत में आ जायगी । इसलिए मैं स्वयं इस पक्षी के बारे में राजा से कहूंगा ।' यह सोचकर उसने ऐसा ही किया । खिले कमल की तरह नेत्र और मुखवाले राजा ने भी उस पक्षी को देखकर बड़ा सुख पाया और कहा, "अरे रक्षा - पुरुषो! इस पक्षी की होशियारी से रखवाली करो तथा उसे जितना दह चाहे खाना-पीना दो ।" मंत्रियों ने कहा, "कैसे इस झूठे बहेलिये की बात मानकर आपने इस पक्षी को लिया है ? क्या पक्षी की बीट में सोना होना संभव है? इसलिए पिंजडे से इस पक्षी को छोड़ दो ।" मंत्री की बात मानकर राजा ने जैसे ही उस पक्षी को छोड़ा वैसे ही उसने ऊंचे फाटक के तोरण पर बैठकर सोने की बीट की और कहा, "पहले तो मैं मूर्ख, दूसरे शिकारी, फिर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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