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________________ २०२ पञ्चतन्त्र की और उसे अपना मांस खाने का निमंत्रण दिया।" ___ अरिमर्दन ने पूछा, “यह कैसे?" क्रूराक्ष कहने लगा-- ..कबूतर और बहेलिये की कथा "किसी भयंकर वन में नीच प्राणियों के काल के समान एक पापी चिड़ियों का शिकारी घूमता था। "न उसके कोई मित्र थे न रिश्तेदार न बंधु । उसके निर्दय काम से सबने उसे छोड़ दिया था। अथवा “जो नृशंस दुरात्मा जीवों का वध करने वाले होते हैं वे सर्पो की तरह लोगों को तंग करते हैं। "वह पिंजरा, जाल और लाठी लेकर जीवों को मारने के लिए प्रतिदिन वन में जाता था। "एक दिन वन में घूमते हुए कोई कबूतरी उसके हाथ लगी और उसे उसने पिंजरे में बंद कर दिया। "बाद में सब दिशाएं बादलों से अंधेरी हो गई, बरसाती हवा चलने लगी तो ऐसा मालूम पड़ने लगा जैसे प्रलय आ गया हो। "डरा हुआ वह शिकारी कांपता हुआ तथा बचाव के लिए जगह खोजता हुआ एक पेड़ के पास जा पहुंचा। " एक क्षण के लिए उसने तारों भरे आकाश की रोशनी में पेड़ के पास पहुंच कर कहा, "जो कोई भी यहां रहता है" उसकी मैं शरण में आया हूं, उसको मेरी रक्षा करनी चाहिए। जाड़े से मैं छिदा जा रहा हूं और भूख से बेहोश होता जा रहा हूं।" " उस पेड़ की डाल पर बहुत दिनों से घोंसला बना कर एक कबूतर अपनी पत्नी से अलग होकर दुखित होकर रो रहा था। “ भयंकर हवा के साथ पानी बरस रहा है और मेरी प्यारी अभी तक वापस नहीं लौटी। उसके बिना मेरा घर अभी तक
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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