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________________ १६८ पञ्चतन्त्र आरम्भ करके काम को खतम करना, यह बुद्धि का दूसरा लक्षण है । इसलिए काम शुरू न करना ही शुरू करके छोड़ देने से बेहतर है । मैं यह शब्द सुनाकर अपने को प्रकट कर दूंगा ।" ऐसा सोचकर उसने धीमी-धीमी आवाज की जिसे सुनकर उल्लुओं का पूरा झुंड उसे मारने के लिए चल पड़ा । उसने कहा, “अरे! मैं स्थिरजीवि मेघवर्ण का मंत्री हूं। मेघवर्ण ने मुझे इस हालत को पहुंचा दिया है, ऐसा तुम अपने मालिक से कहो । उससे मुझे बहुत कुछ कहना है ।" उन सबके कहने पर उलूकराज अचंभे में पड़कर उसी समय उसके पास पहुंचकर बोले, “अरे ! तेरी ऐसी हालत कैसे हुई ? " स्थिरजीवि ने कहा, “देव ! मेरी ऐसी हालत का सवब सुनिए । कल वह दुरात्मा मेघवर्णं आप से मारे गए बहुत से कौओं को देखकर शोक और गुस्से से आप पर धावा करने के लिए चल पड़ा । इस पर मैंने कहा, “स्वामी ! उनके ऊपर तुम्हें चढ़ाई नहीं करनी चाहिए । वे मजबूत हैं और हम सब कमजोर । कहा भी है * "ऐश्वर्य चाहने वाले निर्बल को मन से भी बलवान का मुकाबला नहीं करना चाहिए । इस संसार में वेतसवृत्ति वाला (झुकने वाला) नहीं मारा जाता, पर शलभ-वृत्ति वाला ( अपनी कमजो जाने बिना जोरदार के साथ युद्ध करने वाला ) अवश्य मारा जाता है । । इसलिए उसे भेंट देकर सुलह करना ही ठीक है “जोरावर दुश्मन को देखकर सब कुछ देकर भी बुद्धिमान अपनी जान बचाते हैं, जान बचने पर धन तो फिर से मिल जाता है । यह सुनकर बदमाशों से गुस्सा दिलाए जाने पर और मुझे आपका पक्षपाती होने का शक करते हुए उसने मुझे इस हालत को पहुंचा दिया है । इसलिए मैं आपकी शरण आया हूं । बहुत कहने से क्या फायदा ? जब मैं चलने लायक हो जाऊंगा तो मैं आपको उसकी जगह ले जाकर सब कौओं को मरवा डालूंगा ।” अरिमर्दन ने यह सुनकर पुश्तैनी मंत्रियों के साथ सलाह की । कहा भी है
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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