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________________ काकोलूकीय १६५ परिहार के लिए सतैल स्नान की विधि हैं । जब तक कोई दूसरा न देखे, फौरन इसे अलग कर दे।" वह भी बकरे को गधा जानकर डर से उसे जमीन पर पटककर अपने घर की तरफ भागा। उन तीनों धूर्तों ने मिलकर उस बकरे को ले लिया और मारकर उसे इच्छापूर्वक खाने लगे। इसलिए मैं कहता हूँ कि धूर्तों ने जिस तरह बकरे के बारे में ब्राह्मण को ठगा था, उसी प्रकार अनेक प्रकार की बुद्धिवाले और सुविज्ञ मनुष्य अपने से अधिक बलवान शत्रुओं को भी ठग सकते हैं। यह ठीक कहा है कि " नये नौकरों के विनय से, अतिथियों के मीठे वचन से, स्त्रियों के झूठे रोने से और धूर्तों के कपट बाक्यों से इस संसार में कौन नहीं ठगा गया है ? फिर भी बहुत से कमजोरों के साथ भी बैर ठानना ठीक नहीं । कहा भी है कि "बहुतों का विरोध नहीं करना चाहिए, समूह दुर्जय होता है। फुफकारते हुए सर्प को भी चींटियां खा जाती हैं।" मेघवर्ण ने कहा, "यह कैसे ?" स्थिरजीवि कहने लगा काले साँप और चींटी की कथा "किसी बांबी में अतिदर्प नामक एक बड़ा काला सांप रहता था। एक समय वह बिल के बड़े रास्ते को छोड़कर छोटे रास्ते से निकलने लगा। उसके ऐसे निकलते हुए बड़े शरीर होने के कारण और अभाग्यवश छेद के छोटे होने के कारण उसके शरीर में घाव हो गया। घाव और लह के गंध से पीछा करती हुई चींटियां उसके तमाम शरीर में लग गई और उसे व्याकुल कर दिया। कुछ को उसने मारा और कुछ को फटकारा, पर बहुतसी चींटियां होने से उसका घाव बढ़ गया और इस तरह उसका तमाम शरीर चुटैल हो गया और वह मर गया।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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