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________________ १६२ पञ्चतन्त्र इसलिए मैं कहता हूं कि न्यायाधीश के पास जाकर न्याय करने के लिए तत्पर खरगोश और कपिजल पूर्व समय में नष्ट हो गए। __ इसलिए रात में अंधे बने हुए तुम सब इस दिन के अंधे उल्लू को राजा बनाकर खरगोश और कपिजल के रास्ते जाओगे, यह समझकर जो अच्छा लगे वह करो।" बाद में उसकी बातें सुनकर 'इसने ठीक कहा, ' यह कहकर, 'हम राजा चुनने के लिए फिर एक बार मिलेंगे, ' ऐसा कहते हुए पक्षिगण अपनी इच्छा के अनुसार चले गए। केवल राजतिलक के लिए कृकालिकाके साथ भद्रासन के ऊपर बैठा हुआ दिन में अंधा उल्लू बाकी बच गया। उसने कहा , “यहां कौन है ?' अभी तक हमारा अभिषेक क्यों नहीं किया गया ? इस पर कृकालिका ने कहा , “भद्र! तुम्हारे अभिषेक में कौए ने विघ्न डाला है। वे पक्षी अपनी मनमानी दिशाओं में चले गए हैं। केवल वह कौआ किसी कारण से यहां बैठा है । अब तुम उठ खड़े हो जिससे मैं तुम्हें तुम्हारे स्थान पर पहुंचा दूं । यह सुनकर वह विषादपूर्वक बोला, “अरे दुष्ट ! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है, जिससे तूने मेरे राज्याभिषेक में विघ्न डाला? आज से मेरा-तेरा पुश्त-दर-पुश्त का वैर हो गया। कहा है कि "तीर से बिंधा हुआ और तलवार से कटा हुआ घाव फिर से भर सकता है, पर हल्की बात बोलने से वचन रूपी घाव कभी नहीं भरता।" यह कहकर वह कृकालिका के साथ अपने घर को चला गया । पोछे डर के मारे व्याकुल होकर कौआ सोचने लगा , “अहो ! अकारण ही मैंने यह वैर साधा है । क्यों मैंने इसके लिए ऐसा कहा ? कहा है कि, "देश-काल के विरुद्ध, भविष्य के लिए दुखकारी, अप्रिय तथा अपने को छोटा दिखाने वाला ऐसा वचन जो बिना कारण बोलता है, वह वचन नहीं, जहर की तरह हो जाता है। "बुद्धिमान पुरुष बलवान होने पर भी स्वयं दूसरे को वैरी नहीं बनाता । 'हमारे पास वैद्य है', यह सोचकर कौन ऐसा चतुर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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