SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० गुड़ से बढ़ा हुआ कफ तो अच्छे होने पर स्वयं ठीक हो जाता है। "स्त्री, शत्रु, कुमित्र तथा विशेष-कर वेश्याओं के साथ जो एक भाव से विश्वास करता है, वह मनुष्य जिंदा नहीं रहता। "देवता का, ब्राह्मण का, अपना तथा गुरु का काम एक भाव से करना चाहिए, पर दूसरों का काम दुतरफी चाल से करना चाहिए। "भाजिनामा यत्तियों के लिए अद्वैतभाव सदा प्रशंसनीय है,पर कामियों के लिए तथा खासकर राजाओं के लिए वह प्रशंसनीय नहीं है। इस तरह दुतरफी चाल के सहारे तू अपनी जगह रह सकेगा और लालच के सहारे शत्रु को उखाड़ फेंकेगा। फिर यदि उसमें कोई दोष देखेगा तो उसे मार गिराएगा।" मेघवर्ण ने कहा, “तात ! मैं उसका अड्डा तक तो जानता नहीं, फिर दोष कैसे जानूंगा ?" स्थिरजीवि ने कहा, "वत्स! उसके स्थान काही नहीं, उसके दोषों का भी मैं गुप्तचरों से पता लगाऊंगा। कहा है कि "पशु गंध से देखते हैं, ब्राह्मण वेद से देखते हैं, राजा गुप्तचरों से देखते हैं और दूसरे मनुष्य आंखों से देखते हैं। इस विषय में कहा भी है-- "जो राजा गुप्तचरों द्वारा अपने पक्ष के तथा विशेष-कर दूसरे पक्ष के तीर्थों को (उच्चाधिकारी)जानता है, वह दुःखजनक स्थिति को प्राप्त नहीं होता।" मेघवर्ण ने कहा ,"तात ! तीर्थ किन्हें कहते हैं ? उनकी संख्या क्या है ? गुप्तचर कैसे होते हैं ? यह सब कहिए।" वह बोला , "इस विषय में भगवान नारद ने युधिष्ठिर से कहा था-शत्रु पक्ष में अठारह और अपने पक्ष में पन्द्रह तीर्थ होते हैं। तीन-तीन गुप्तचरों द्वारा उन तीथों का हाल जानना चाहिए। उन्हें जानने से स्वपक्ष और परपक्ष अपने वश में आते हैं । नारद ने युधिष्ठिर से कहा था "क्या तुम दूसरे पक्ष के अठारह और अपने पक्ष के पन्द्रह तीर्थों को तथा एक-दूसरे से अपरिचित, ऐसे तीन-तीन गुप्तचरों को
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy