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________________ १७८ पञ्चतन्त्र "अपने स्थान में रहता हुआ एक मनुष्य भी सैकड़ों शत्रुओं का युद्ध में मुकाबिला कर सकता है। इसलिए अपनी जगह छोड़नी नहीं चाहिए। "इसलिए दुर्ग को योद्धाओं, रास्तों, शहर पनाह, खाई से युक्त करके तथा शस्त्रों से सजाकर लड़ाई का निश्चय करके उसमें रहना चाहिए । राजा अगर जिंदा रहे तो राज्य पाता है और मरे तो स्वर्ग जाता है। और भी "एक स्थान में जमे हुए पेड़ प्रतिकूल हवा से भी जिस तरह नहीं "उखड़ते, उसी तरह एक स्थान में जमे हुए छोटे आदमी भी जोरदार से दुःख नहीं पाते । बड़ा तथा चारों ओर से दृढ़ पेड़ भी अगर अकेला हो तो जोर की हवा उसे हिला सकती है, लेकिन .. बहुत से एक साथ लगे हुए वृक्ष एक होने से तेज हवा से भी नहीं गिरते। "इसी तरह बहादुर आदमी भी अगर अकेला हो तो भी दुश्मन उसे हरा सकता ह, और उसे मार भी डालता है, ऐसा माना गया है।" इस तरह प्रजीवि ने अपना विचार कहा । इसका नाम आसन है। यह सुनकर मेघवर्ण ने चिरंजीवि से कहा, “भद्र ! तू भी अपना विचार कह।" उसने उत्तर दिया, “छ: गुणों में मुझे संश्रय अच्छा लगता है। इसलिए उसका पालन कीजिए। कहा है कि "समर्थ और तेजस्वी पुरुष भी बिना सहारे के क्या कर सकता है ? बिना हवा के जली हुई आग भी स्वयं बुझ जाती है। "मनुष्यों के लिए विशेष कर अपने पक्ष का संग-साथ बेहतर है, भूसी से भी अलग हो जाने पर धान नहीं उगता।। .:. इसलिए यहीं रहकर आप किसी बलवान का सहारा लीजिए जो आपकी विपत्ति से रक्षा करे। अगर आप अपनी जगह छोड़ दीजिएगा,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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