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________________ १६५ पञ्चतन्त्र सकता है ? "मर जाना श्रेयस्कर हैं,पर आप ऐसे लोगों से वियोग सहना उचित नहीं। जन्मान्तर में प्राण पुनः मिलेगा, पर आप जैसे मित्र नहीं।" जब वह यह सब कह रहा था, इसी बीच में कान तक धनुष की डोर चढ़ाये शिकारी वहां आ पहुंचा। उसे देखते ही चूहे ने उसके तांत के बंधन उसी समय काट दिए और चित्रांग तुरन्त पीछे देखता हुआ भाग निकला। लघुपतनक पेड़ पर चढ़ गया और हिरण्यक पास के बिल में घुस गया। हिरन के भाग जाने से दुखी और अपनी मेहनत व्यर्थ जाते देखकर उस शिकारी ने मंथरक को धीरे-धीरे जमीन पर रेंगते हुए देखा और सोचा, "यद्यपि हिरन को तो विधाता ने मुझसे छीन लिया फिर भी उसने मेरे भोजन के लिए इस कछुए का इन्तजाम कर दिया है । इसके मांस से मेरे कुटुंबियों के भोजन का प्रबंध होगा।" यह सोचकर कछुए को घास से ढांक कर और धनुष के ऊपर लटकाकर तथा कंधे पर रखकर वह अपने घर की ओर चल पड़ा। ___ इस तरह उसे ले जाते हुए देखकर दुःख से व्याकुल हिरण्यक ने कहा, "अरे ! भयंकर दुख आ उपस्थित हुआ है। कहा है कि "समुद्र की तरह एक दुःख से तो मैंने पार पाया ही नहीं था कि तब तक दूसरा दुःख आ पहुंचा। छेद यानी दुर्बल स्थान होने से वहां अनेक अनर्थ पैदा हो जाते हैं। "समय पर रास्ते में जब तक वाधा न पड़े तब तक आनन्द है। पर बाधा आ पड़ने पर कदम-कदम पर तकलीफ होती है। "जो नम्र और सरल होता है वह आपत्ति में नष्ट नहीं होता। शुद्ध वंश में पैदा हुए (धनुष के पक्ष में बांस) धनुष, मित्र और स्त्री दुर्लभ हैं। "माता, स्त्री, सगा भाई, और पुत्र में वैसा विश्वास नहीं होता जैसा कि गाढ़े मित्र में। जिस काल ने मेरे धन का नाश किया, फिर क्यों उसने रास्ते में थके
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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