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________________ पञ्चतन्त्र "जिस तरह हजारों गायों में से भी बछड़ा अपनी मां को खोज निकालता है, उसी तरह पहले के किये हुए काम करने वाले के पीछे जाते हैं। 'मनुष्यों का पूर्वकृत-कर्म अगर वह सोया हो तो भी उसके साथ सोता है, अगर वह जाता हो तो उसके पीछे पीछे जाता है, अगर वह खड़ा रहे तो उसके साथ खड़ा रहता है। "जिस तरह छाया और प्रकाश आपस में एक-दूसरे से बंधे हैं, उसी तरह कर्म और उसका कर्ता भी एक दूसरे से बंध हैं। इसलिए तुम यहीं पर प्रयत्न करते रहो।" बुनकर ने कहा, "प्रिये ! तुम्हारा कहना ठीक नहीं । उद्यम के बिना कर्म फल नहीं देता। कहा है कि "जिस तरह एक हाथ से ताली नहीं बजती , उसी तरह उद्यम के बिना कर्म का फल नहीं मिलता। ऐसा स्मृतियों का कहना है। 'भोजन के समय कर्म-वश मिला हुआ भोजन भी बिना हाथ के परिश्रम के किसी तरह मुंह में नहीं जाता, यह तो देखो ! उसी प्रकार "उद्योगशील पुरुष-सिंह को लक्ष्मी मिलती है। 'भाग्य ही ठीक है', यह तो कापुरुष कहते हैं। इसलिए भाग्य को अलग रखकर अपनी शक्ति के अनुसार पराक्रम करो । यत्न करते हुए जो काम न बने तो इसमें क्या दोष ? और भी "काम मेहनत से सिद्ध होते हैं, केवल सोचने से नहीं । हरिण सोते. हुए सिंह के मुंह में स्वयं नहीं घुस जाते। "हे राजन् ! बिना उद्यम के मनोरथ सिद्ध नहीं होते। 'जो होना होगा वही होगा', ऐसा तो हतोत्साही कहते हैं। ''अपनी ताकत के माफिक मेहनत करने पर भी यदि काम न बने तो दैव द्वारा विघ्न डाले हुए पराक्रम वाले पुरुष की इसमें कोई
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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