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________________ १३४ मित्र-संप्राप्ति ___ का प्रिय होता है, समुद्र नहीं । और भी जिसने दान देकर महिमा नहीं प्राप्त की है उसे राज-राज (महाराजा अथवा कुबेर) ऐसा झूठा नाम देने से क्या मतलब ? निधियों के रक्षक (कुबेर ) को विद्वान महेश्वर नहीं कहते । और भी "उत्तम हाथी सदा दान (मद-जल अथवा दान देने वाला ) से छीज जाने पर भी प्रशंसा के योग्य गिना जाता है, पर शरीर से पुष्ट होते हुए भी दानरहित होने से गदहा निन्दित गिना जाता है। "सुशील और सुवृत्त घड़ा भी बिना दान के नीचे रहता है, पर कानी-कुबड़ी ककड़ी दान के लिए ऊपर रहती है। "बादल पानी देन से लोगों का प्रिय होता है पर मित्र (सूर्य) अपने कर (हाथ अथवा किरण) आगे बढ़ाता है, फिर भी देख नहीं पड़ता। (अर्थात् तुच्छ वस्तु के देने वाले प्रिय हो जाते हैं। पर यदि मित्र हाथ बढ़ाए तो उसके सामने कोई नहीं देखता ।)" यह जानकर गरीब आदमी को भी यथासमय थोड़ा-से-थोड़ा सुपात्र को देना चाहिए। कहा है कि "दान लेने वाला सुपात्र हो, बड़ी श्रद्धा हो और यथोचित देशकाल हो तो बुद्धिमानों द्वारा दिया गया दान अत्यन्त फल देने वाला होता है। और भी "अत्यन्त लालच नहीं करना चाहिए और लालच बिलकुल छोड़ना भी नहीं चाहिए । अत्यन्त लालची के मस्तक में चोटी जम जाती है।" ब्राह्मणी ने कहा , “यह कैसे ?" उसने कहा
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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