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________________ मित्र-संप्राप्ति १३७ हो गए हैं !' 'कुशल तो हैं ?, 'आपके दर्शन से मैं प्रसन्न हूं,' घर आये हुए स्नेही जनों को इस प्रकार आदर से जो आनंदित करता है, उसके घर में हमेशा बेधड़क होकर जाना चाहिए। "जिस घर का मालिक आये हुए अतिथि को देखकर दिशाओं की ओर अथवा नीचे देखता है, उस घर में जो जाता है वह बिना सींग का बैल है। "जहां आगे आकर आदर नहीं किया जाता, जहां मीठी-मीठी बातचीत नहीं होती और गुण-दोष की भी बात नहीं होती, उस महल में जाना ठीक नहीं। एक मठ पाकर ही तुझे घमंड हो गया है और तूने मित्र-स्नेह छोड़ दिया है। पर क्या तू यह नहीं जानता कि इस मठ में ठहरने के बहाने तू ने नरक कमाया है ? कहा भी है -- "अगर नरक जाना है तो एक बरस पुरोहिती का काम कर, अथवा दूसरे उपाय का क्या काम है ? कर तीन दिन मठ की चिंता ! ___ इसलिए तु शोचनीय घमंड में आ गया है। मैं तेरे मठ को छोड़कर जाता हूं।" यह सुनकर भयभीत होकर तामचूड़ ने कहा "भगवान् ! ऐसा मत कहिए। आपके जैसा मेरा कोई दूसरा मित्र नहीं है। आप इस संग-साथ में ढिलाई का कारण सुनिए। यह दुरात्मा चूहा ऊंचे स्थान पर रखे हुए भिक्षा-पात्र पर कूदकर चढ़ जाता है और भिक्षा से बचा अन्न खा जाता है । अन्न के अभाव से मठ में झाडू भी नहीं पड़ सकती। इ लिए चूहे को डराने के लिए मैं बार-बार भिक्षा-पात्र को ठोंकता हूं, और दूसरा कोई कारण नहीं है । इस बदमाश चूहे का कौतुक देखिए कि वह अपनी उछल-कूद से बिल्ली और बन्दर को भी पछाड़ देता है।” बृहत्स्फिक् ने कहा , “ क्या तू जानता है कि उसका बिल कहां है ?" तामचूड़ ने कहा, "मैं ठीक-ठीक नहीं जानता।" उसने कहा, "निश्चय ही उसका बिल खजाने के ऊपर है, इसीलिए वह धन की गरमी से कूदता है। कहा भी है-- "धन की गरमी ही प्राणियों का तेज बढ़ा देती है, फिर त्याग और
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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