SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ पञ्चतन्त्र पर भी नाश हो जाती है। उसी प्रकार "किस्मत के कमजोर होने पर अगर किसी तरह धन मिल भी जाय तो भी वह शंखनिधि (लपोडशंख) की तरह दूसरे धन को भी साथ लेकर चला जाता है । ' इसलिए मेरे लिए पक्षियों का मांस तो दूर रहा कुटुम्ब की रोजी पैदा करने का साधन जाल भी चला गया।" ___ चित्रग्रीव भी उस बहेलिए को आंख से ओझल जानकर कबूतरों से कहने लगा, “अरे ! वह दुरात्मा बहेलिया लौट गया, इसलिए सबको स्वस्थ मन से महिलारोप्य नगर से ईशान दिशा में उड़ना चाहिए। वहां मेरा मित्र हिरण्यक नाम का चूहा सब का बंधन काट देगा। कहा है कि "सब मरणशील प्राणियों पर जब संकट आ पड़ता है तो सिवाय मित्र के दूसरा कोई बात से भी सहायता नहीं करता ।" इस प्रकार चित्रग्रीव द्वारा संबोधित कबूतर महिलारोप्य नगर में हिरण्यक के किलेरूपी बिल पर जा पहुंचे। हिरण्यक भी सौ मुंह वाले बिल-दुर्ग में घुसकर भयरहित होकर रहता था। अथवा ठीक ही कहा है "नीति-शास्त्र में दक्ष चूहा अनागत भय को देखकर सौ मुंह वाली बिल बनाकर वहां रहता था। ''दांतों के बिना सांप और मद के बिना हाथी जैसे सबके वश में हो जाते हैं उसी तरह किले-बिना राजा भी।" और भी "युद्ध में राजा का जो काम हजार हाथियों और लाख घोडों से सिद्ध नहीं होता, वह एक किले से सिद्ध हो जाता है। "किले की दीवार पर खड़ा हुआ एक धनुर्धारी बाहर के सौ धनु र्धारियों का सामना कर सकता है , इसलिए नीति-शास्त्र जानने वाले दुर्ग की प्रशंसा करते हैं।" इसके बाद चित्रग्रीव बिल के पास आकर ऊंची आवाज में बोला,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy