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________________ १२२ पञ्चतन्त्र चुगने के लिए जब वह शहर की ओर जा रहा था, उसने देखा कि हाथ में जाल लिये हुए काला कलूटा, फटे पैर और खड़े बालों वाला, यम के सेवक की शकल वाला एक आदमी सामने खड़ा है। उसे देखकर वह सोचने लगा, 'यह दुरात्मा मेरे बसेरे बरगद की तरफ आ रहा है, इसलिए आज उस पर रहने वाले पक्षियों का विनाश होगा या क्या होगा यह मैं नहीं जानता ।" इस तरह विचार करके बरगद के पेड़ के ऊपर जाकर उसने सब पक्षिओं से कहा, " अरे ! यह दुरात्मा बहेलिया जाल और चावल लेकर आ रहा है । उसका तुम्हें बिलकुल विश्वास नहीं करना चाहिए। वह जाल फैलाकर चावल छींटेगा । तुम सब उन चावल के दानों को हलाहल विष मानना ।" वह यह कह ही रहा था कि बहेलिये ने जड़ के नीचे आकर जाल फैला कर सिंदुवार के फूलों जैसे सफेद जीरट लिए और कुछ दूर जाकर छिपकर खड़ा हो गया। वहां जो पक्षी रहते थे वे भी लघुपतनक की बात से आगाह होकर उन चावल के दानों को हलाहल मानते हुए छिपकर बैठ गए । • इसके बाद चित्रग्रीव नामक कबूतरों का राजा अपने एक हजार साथियों के साथ जीवन निर्वाह के लिए उड़ते हुए चावल के दानों को दूर से देखते लघुपतनक के मना करने पर भी जीभ के लालच से उन्हें खाने के लिए टूट पड़ा, और साथियों के साथ जाल में फंस गया। अथवा ठीक ही कहा है“पानी में रहने वाली वेवकूफ मछलियों की तरह जीभ के लालच में फंसकर अज्ञानियों का अचिंतित नाश होता है। अथवा भाग्य की प्रतिकूलता से ही यह होता है; उसका इसमें कोई दोष नहीं । कहा भी है " पर स्त्री के हरण का दोष क्या रावण नहीं जानता था ? सोने के मृग न होने की संभावना का क्या राम को पता नहीं था ? युधिष्ठिर क्या पासों से सहसा अनर्थ में नहीं पड़ गए ? पास में आई विपत्ति से जिनका मन मूढ़ हो जाता है उनकी बुद्धि प्रायः मन्द हो जाती है । और भी
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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