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________________ पञ्चतन्त्र "पहले जिसे सभा में गुणवान कहा हो उसका दोष अपनी प्रतिज्ञा-भंग के डर से मनुष्य को नहीं कहना चाहिए।" इस तरह विलाप करते हुए पिंगलक के पास आकर दमनक ने खुशी से इस तरह कहा, “देव ! आप का यह न्याय कायरतापूर्ण है कि जिससे द्रोही अथवा घास खानेवाले के मारे जाने के बाद आप इस तरह शोक करते हैं। राजाओं को यह शोभा नहीं देता। कहा है कि "पिता, भाई, पुत्र, पत्नी अथवा मित्र जो भी जान लेना चाहे उसे मारने वाले को पाप नहीं लगता। और भी "दयालु राजा, सर्वभक्षी ब्राह्मण, निर्लज्ज स्त्री, दुष्टबुद्धि सहायक, विरोधी सेवक और प्रमादी अधिकारी, इन सब को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि वे अपने काम का पता नहीं देते । और भी "कितनी बार सच्ची और कितनी बार झूठ से भरी, किसी समय कठोर और किसी समय मिठ-बोली, किसी समय हिंसक तो किसी समय दयालु, किसी बार धन इकट्ठा करने वाली तो किसी बार उदार, किसी बार खूब खर्चने वाली तो किसी बार खूब संग्रह करने वाली, इस तरह राजनीति वेश्या की तरह अनेक रूप धारण करती है। और भी "कोई बड़ा होने पर भी उपद्रव के कारण पूजा नहीं जाता। मनुष्य नागों की पूजा करते हैं, पर नाग मारने वाले गरुड़ की नहीं। और भी"न सोचने लायक के बारे में तुम सोचते हो, और फिर भी भारी बातें कहते हो । पंडित मरे हुए और जीतों के बारे में नही सोचते।" इस प्रकार उससे समझाये जाकर पिंगलक ने संजीवक का शोक छोड़ दिया और दमनक के मंत्रित्व में राज्य करने लगा।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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