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________________ ११४ नाश हो जाय ।" बाद में वह बगले से बोला, “मामा! अगर यह बात है तो नेवले के बिल से सांप के खोखले तक मछली के मांस के टुकड़े रक्खो जिससे नेवला उस रास्ते से जाकर उस दुष्ट सर्प को मार डाले ।” बाद में यही किया गया और मछली के मांसवाले रास्ते से जाकर नेवले ने काले सांप को मारने के बाद उस पेड़ पर रहने वाले सब बगलों को भी धीरे-धीरे खा डाला । इसलिए मैं कहता हूं कि धर्मबुद्धि और पापबुद्धि इन दोनों को मैं जानता हूं । पुत्र ने व्यथै पांडित्य के परिणामस्वरूप अपने पिता को मार डाला । पञ्चतन्त्र इस पापबुद्धि ने उपाय का तो विचार किया पर विघ्न का नहीं, इसका उसे फल मिला । इस प्रकार अरे मूर्ख ! तूने पापबुद्धि की तरह उपाय तो विचारा पर विघ्न का ख्याल नहीं किया । तूने स्वामी की जान जोखिम में डाल दी है । इससे मैं जानता हूं कि तू सज्जन नहीं है, केवल पापबुद्धि है। तूने स्वयं अपनी दुष्टता और कुटिलता प्रकट की है । अथवा ठीक ही कहा है कि "अगर मूर्ख मोर बादल गरजने से आनन्दित होकर नाचने न लगें तो उन के मलद्वार को प्रयत्न करने पर भी कौन देख सकता है ? अगर तू स्वामी की यह हालत कर सकता है तब हमारे जैसों की क्या गिनती है ! इसलिए तू मेरे पास न रह । कहा है कि "हे राजन् ! चूहे जहां हजार भर की तराजू खा जायं, वहां बाज बालक को ले उड़े इसमें कोई शक नहीं ।" दमनक ने कहा, " यह कैसे ?" करटक कहने लगा- लोहे की तराजू और बनिएं की कथा " किसी नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। धन कम हो जाने पर देसावर जाने की इच्छा से वह सोचने लगा- " जिस देश में अथवा स्थान में अपने पुरुषार्थ से सुख भोगा हो वहां गरीबी की हालत में जो रहे उसे पुरुषाधम जानना चाहिए ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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